गणित एक ऐसा विज्ञान है जो बहुत कम लोगों को लुभाता है। स्कूल के दिनों में हमें गणित के सवाल हल करने में अच्छी-खासी मशक्कत करनी पड़ती थी। घंटों दिमाग लड़ाने के बाद भी नतीजा अक्सर सिफर ही निकलता था। यह सिलसिला आज भी जारी है। बच्चे गणित के सवालों में उलझे रहते हैं और हम उनकी कोई मदद नहीं कर पाते। देश के स्कूलों में एक तरफ तो छात्र-शिक्षक अनुपात बहुत ज्यादा है और दूसरी तरफ ऐसे शिक्षक बहुत कम हैं जो छात्रों में गणित की बुनियाद मजबूत कर सकें। पिछले वर्ष नोबेल पुरस्कार से सम्मानित भारतीय मूल के अमेरिकी वैज्ञानिक प्रो. वेंकटरमण रामाकृष्णन ने टीचर की जो महिमा बताई है उस पर सभी को गौर करना चाहिए। प्रो. रामाकृष्णन को आज भी उन टीचरों के नाम याद हैं, जिन्होंने भारत में मैथ्स और फिजिक्स में उनके बुनियादी ज्ञान को सुदृढ़ किया था। भारत में गणित अध्ययन की परंपरा बहुत पुरानी है। आर्यभट्ट और ब्रह्मगुप्त को कौन नहीं जानता। दुनिया को शून्य का बोध सबसे पहले हमने ही कराया था। 14वीं सदी में गणितज्ञ माधव ने न्यूटन और लाइबनिज से पहले ही कैलकुलस के सिद्धांत खोज लिए थे। 20वीं सदी के प्रारंभ में श्रीनिवास रामानुजन ने अपने गणितीय अनुसंधानों से गणित की दुनिया को रोमांचित कर दिया। आज भारत के स्कूल भले ही गणित की पढ़ाई में पिछड़ रहे हों, लेकिन देश में गणितज्ञों का एक छोटा-सा समुदाय भारत को गणित की दुनिया में प्रतिष्ठित स्थान दिलाने के लिए पिछले कई वर्षो से सक्रिय है। टाटा इंस्टीटयूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च के प्रोफेसर और प्रमुख गणितज्ञ एमएस रघुनाथन का मानना है कि भारत विश्व की एक प्रमुख गणित शक्ति बन चुका है और इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि दुनिया के गणितज्ञों ने इस वर्ष अपनी अंतरराष्ट्रीय कांग्रेस के लिए भारत का चुनाव किया है। इंटरनेशनल कांग्रेस ऑफ मैथमैटिशियंस-2010 (आईसीएम 2010) का आयोजन हैदराबाद में 19 से 27 अगस्त तक होगा। भारत गणित कांग्रेस आयोजित करने वाला तीसरा एशियाई देश है। इससे पहले क्योटो (जापान) में 1990 और बीजिंग (चीन) में 2002 में आईसीएम का आयोजन हो चुका है। आईसीएम पर दुनिया की खास नजर होती है, क्योंकि इसी दौरान फील्ड्स मेडल का ऐलान किया जाता है, जिसे नोबेल के समकक्ष माना जाता है। भारत में इस तरह अंतरराष्ट्रीय स्तर के ख्यातिप्राप्त गणितज्ञों का समागम सचमुच गौरव की बात है और इसका महत्व इस बात से भी बढ़ जाता है कि 2010 भारत की मैथमेटिकल सोसाइटी की स्थापना का शताब्दी वर्ष और रामानुजन मैथमेटिकल सोसायटी का रजत जयंती वर्ष भी है। देश में गणितज्ञों की संख्या भले ही कम हो और औसत गणितज्ञ मामूली स्तर के हों, लेकिन चुनिंदा गणितज्ञों ने सदा भारत के परचम को लहराया है। प्रो. रघुनाथन का कहना है कि भारत ने जिस तरह विश्व के आर्थिक संकट के प्रभावों को निष्फल किया, उसके पीछे कहीं न कहीं हमारे गणितज्ञों का अदृश्य योगदान जरूर है। यह सही है कि गणितज्ञों के कार्य लोगों के समक्ष ज्यादा उजागर नहीं होते और विज्ञान के दूसरे क्षेत्रों और वैज्ञानिकों की उपलब्धियों की तरह उन्हें मीडिया में पब्लिसिटी नहीं मिलती, लेकिन सभी जानते हैं कि विज्ञान की गाड़ी गणित के इंजन के बगैर आगे नहीं बढ़ सकती। कंप्यूटर विज्ञान आज जिस मुकाम पर पहुंचा है, उसका बहुत कुछ श्रेय गणितज्ञों की मेहनत को ही जाता है। अब सवाल यह है कि गणित के प्रति ज्यादा से ज्यादा छात्रों को कैसे आकृष्ट किया जाए और कैसे गणित शिक्षकों की संख्या बढ़ाई जाए? केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री पृथ्वीराज चौहान मानते हैं कि बहुत कम छात्र गणित को मुख्य विषय के रूप में चुनते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि इसमें कॅरियर बनाने के विकल्प बहुत कम हैं। यह एक गूढ़ विज्ञान है, लेकिन इसे लोकप्रिय बनाने के लिए इसके व्यापारिक पक्ष यानी एप्लाइड मैथमेटिक्स में और अधिक रिसर्च की आवश्यकता है। कंप्यूटर विज्ञान के अलावा रक्षा विज्ञान के कई क्षेत्र ऐसे हैं, जहां गणित की जरूरत पड़ती है। गणित को विज्ञान के साथ ही जोड़ा जाना चाहिए और यह सरकार का दायित्व है कि वह इस तरह का संदेश देश के कोने-कोने में पहुंचाए। उम्मीद है कि हैदराबाद में होने वाली अंतरराष्ट्रीय गणित कांग्रेस भारतीय युवाओं को गणित से जोड़ने के लिए प्रेरित करेगी(मुकुल व्यास,दैनिक जागरण,6.8.2010)।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी के बगैर भी इस ब्लॉग पर सृजन जारी रहेगा। फिर भी,सुझाव और आलोचनाएं आमंत्रित हैं।