आंखों देखी कोई मक्खी नहीं निगलता, बरकतउल्ला विश्वविद्यालय ने इस कहावत को भी झूठा साबित कर दिया। एमएड में कालेजों द्वारा की गई सारी मनमानी देखने के बाद भी बीयू प्रशासन ने सारे परीक्षा फार्म मान्य कर दिए। इतना ही नहीं, सारी गलतियों के लिए राज्य शासन को जिम्मेदार ठहराते हुए बीयू ने शासन को सबक देने में भी संकोच नहीं दिखाया है। बीयू की स्थायी समिति की बैठक गुरुवार को आयोजित की गई। इसमें समिति ने एमएड की परीक्षाएं पूर्व घोषित तिथि सात अगस्त से ही कराने का निर्णय लिया। साथ ही उन सभी 19 कालेजों के छात्र-छात्राओं को परीक्षा में शामिल करने पर रजामंदी दे दी, जिनके परीक्षा फार्म विवि में हैं। विवि प्रशासन के समान समिति के सदस्य भी कालेजों के गोरखधंधे पर पर्दा ही डालते रहे। न तो किसी ने अकादमी शाखा द्वारा दी गई संक्षेपिका को पढ़ना जरूरी समझा और न ही नियमों का पालन ही करने पर जोर दिया। डीन द्वारा की गई आपत्तियों को भी समिति ने दरकिनार कर दिया। अंत में समिति ने भी प्रशासन की हां में हां मिलाते हुए कालेजों से शपथ पत्र लेकर प्राचार्य द्वारा अग्रेषित फार्म को ही मान्य कर दिया।
बिना पात्रता के ही देंगे परीक्षा :
विश्वविद्यालय ने अभी तक वर्धमान इटारसी, तीरथ तथा क्रिसेंट कालेज के किसी भी छात्र की पात्रता तैयार नहीं की है। जबकि परीक्षा में शामिल होने के लिए पात्रता प्रमाण पत्र जरूरी है। इन तीनों के साथ ही सैफिया, श्री इंस्टीट्यूट ऑफ एजूकेशन तथा मान सरोवर ने भी प्रवेश सूची जमा नहीं की थी। इन सभी ने सीधे मई में परीक्षा फार्म ही जमा किए थे। नियमानुसार इनमें से एक की भी पात्रता नहीं बनना थी। वहीं विवि प्रशासन कोड 28 का हवाला देते हुए प्राचार्य के शपथ पत्र को सब कुछ मान रहा है। जबकि केवल चार कालेजों में कोड 28 के तहत नियमित प्राचार्य हैं। शेष सभी में अभी तक नियमित प्राचार्य तक नहीं हैं।
निश्चित तौर पर भविष्य की कसौटी परीक्षा ही हैं, लेकिन परीक्षा की शुचिता बनी रहे। इसके लिए हर स्तर पर नियम-परिनियम भी बनाए गए हैं। मगर जब बागड़ ही खेत खाने लगेगी तो नियम क्या करेंगे? जब विश्वविद्यालय ही पथभ्रष्ट होकर नियमों की अनदेखी कर इनका तोड़ ढूंढने का काम करेंगे तो कैसे बचेगी परीक्षा की शुचिता। बरकतउल्ला विश्वविद्यालय की छवि वैसे ही देश भर में बहुत अच्छी नहीं है। घर बैठे पास होने के लिए पहला नाम बीयू का ही लिया जाता है। बीएड, बीपीएड, एमएड और एमपीएड की परीक्षाओं ने पिछले साल साबित भी किया है कि आखिर बीयू की यह छवि क्यों है। बीएड में परीक्षा के दिन तक फार्म भरे गए। इतना ही नहीं विवि में ही सारे सौदे हुए और नगद छात्रों को बैठाने मृत कालेजों में भी जान डाली गई। दो साल पहले बीपीएड की परीक्षा में राज्यपाल द्वारा कराई गई जांच ने तो कलई ही खोल कर रख दी थी। मगर पुरानी गलतियों का असर बीयू में कुछ होता है, एमएड की परीक्षा में लिये गए फैसले से ऐसा कहीं प्रतीत नहीं होता। सारे नियमों को ताक पर रखकर एक बार फिर दलालों की परीक्षा को मंजूरी देकर विवि ने साबित कर दिया है कि छात्र और छात्रहित केवल एक हथियार है। जिनसे निजी कालेज और उनके दलालों का हित साधा जाता है। मगर इस सारे खेल को चुपचाप देखने वाली व्यवस्था भी छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ के दोष से नहीं बच सकती। हर कदम पर छात्र यही पूछेंगे, परीक्षा के नाम पर हो रहे भ्रष्टाचार को सहन क्यों किया जा रहा है और क्यों मौन हैं महामहिम।
निश्चित तौर पर भविष्य की कसौटी परीक्षा ही हैं, लेकिन परीक्षा की शुचिता बनी रहे। इसके लिए हर स्तर पर नियम-परिनियम भी बनाए गए हैं। मगर जब बागड़ ही खेत खाने लगेगी तो नियम क्या करेंगे? जब विश्वविद्यालय ही पथभ्रष्ट होकर नियमों की अनदेखी कर इनका तोड़ ढूंढने का काम करेंगे तो कैसे बचेगी परीक्षा की शुचिता। बरकतउल्ला विश्वविद्यालय की छवि वैसे ही देश भर में बहुत अच्छी नहीं है। घर बैठे पास होने के लिए पहला नाम बीयू का ही लिया जाता है। बीएड, बीपीएड, एमएड और एमपीएड की परीक्षाओं ने पिछले साल साबित भी किया है कि आखिर बीयू की यह छवि क्यों है। बीएड में परीक्षा के दिन तक फार्म भरे गए। इतना ही नहीं विवि में ही सारे सौदे हुए और नगद छात्रों को बैठाने मृत कालेजों में भी जान डाली गई। दो साल पहले बीपीएड की परीक्षा में राज्यपाल द्वारा कराई गई जांच ने तो कलई ही खोल कर रख दी थी। मगर पुरानी गलतियों का असर बीयू में कुछ होता है, एमएड की परीक्षा में लिये गए फैसले से ऐसा कहीं प्रतीत नहीं होता। सारे नियमों को ताक पर रखकर एक बार फिर दलालों की परीक्षा को मंजूरी देकर विवि ने साबित कर दिया है कि छात्र और छात्रहित केवल एक हथियार है। जिनसे निजी कालेज और उनके दलालों का हित साधा जाता है। मगर इस सारे खेल को चुपचाप देखने वाली व्यवस्था भी छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ के दोष से नहीं बच सकती। हर कदम पर छात्र यही पूछेंगे, परीक्षा के नाम पर हो रहे भ्रष्टाचार को सहन क्यों किया जा रहा है और क्यों मौन हैं महामहिम।
(दैनिक जागरण,भोपाल,6.8.2010)।
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