राज्य शिक्षा केंद्र ने पहली से आठवीं तक सतत मूल्यांकन प्रणाली के नियम बनाकर लागू कर दिए हैं, लेकिन इसके तहत स्कूलों में पढ़ाना मुश्किल होगा। यह स्थिति स्कूलों का समय कम करने से बनी है। नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू हो जाने के बाद राज्य शासन ने स्कूलों का समय साढ़े सात घंटे कर दिया था। इसमें पहली से आठवीं तक के बच्चों को सतत मूल्यांकन प्रणाली के तहत शैक्षिक व सह शैक्षिक विषय पढ़ाए जाने थे। स्कूलों का समय बढ़ाए जाने पर शिक्षक विरोध में उतर आए। इसे देखते हुए शिक्षामंत्री अर्चना चिटनिस के निर्देश पर स्कूलों का समय पूर्व की भांति कर दिया गया। इसके तहत एक शिफ्ट में लगने वाले स्कूल साढ़े छह घंटे व दो शिफ्ट में लगने वाले स्कूलों का समय साढ़े पांच घंटे है। इस समय में बच्चों को सिर्फ किताबी ज्ञान (शैक्षिक विषय) दिया जा सकता है। सह शैक्षिक में साहित्यिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक, खेलकूद, स्काउट गाइड, ईमानदारी, सत्यवादिता, स्वच्छता, पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता आदि गतिविधियां शामिल की गई है। इस गतिविधियों को स्कूल में आयोजित करने के लिए समय बढ़ाया गया था। लेकिन स्कूलों का समय पूर्व की भांति कर देने से इसे लागू करना मुश्किल माना जा रहा है। राज्य शिक्षा केंद्र के ही आला अधिकारियों का कहना है कि सतत मूल्यांकन के लिए नियम बनाकर डाल दिए गए हैं। लेकिन वर्तमान समय में लग रहे स्कूलों के समय में पढ़ाना मुश्किल होगा। उक्त समय में बच्चों को सह शैक्षिक ज्ञान नहीं दिया सकता है। नियम भी साढ़े सात घंटे लगने वाले स्कूलों के अनुसार बनाए गए थे। इस संबंध में आयुक्त राज्य शिक्षा केंद्र मनोज झालानी से संपर्क नहीं हो गया(दैनिक जागरण,भोपाल,7.8.2010)।
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