बिहार सरकार ने कार्य विभागों के लेखा लिपिकों को झटका दिया है। सामान्य लिपिकों की भांति इन्हें एकीकरण का वेतन लाभ देने से सरकार ने इनकार कर दिया है। वित्त विभाग ने जल संसाधन, पथ निर्माण,भवन निर्माण, लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग, लघु जल संसाधन विभाग और ग्रामीण कार्य विभाग के प्रधान सचिव के नाम पत्र जारी कर स्पष्ट कर दिया है कि कार्य विभाग के कनीय एवं वरीय लेखा लिपिकों का एकीकरण नहीं हुआ था अत: इसे अलग-अलग करने का आदेश जारी करने का कोई औचित्य नहीं है। इस तथ्य से पटना उच्च न्यायालय को भी अवगत कराने का निर्देश दिया गया है। स्पष्ट किया गया है कि पहली जनवरी 1986 के प्रभाव से कनीय लेखा लिपिक के लिए 1200 से 1800 तथा वरीय लेखा लिपिक के लिए 1400 से 2300 तथा इसी प्रकार पहली जनवरी 1996 से 4000 से 6000 एवं 4500 से 7000 रुपये का वेतनमान अनुमान्य होगा। पत्र में कहा गया है कि कनीय एवं वरीय लेखा लिपिकों के वेतनमान को 1980 में एकीकृत मानते हुए उन्हें एकीकरण का वेतन लाभ दिये जाने तथा सामान्य लिपिकों की भांति उनके पृथकीकरण का प्रस्ताव राज्य सरकार को समय-समय पर प्राप्त हुआ है। कार्य विभागों में काम करने वाले कनीय लेखा लिपिकों जिनकी नियुक्ति 28 सितम्बर 1999 के पूर्व की है उन्हें नियुक्ति की तिथि के अनुसार एक अप्रैल 1981 से 730 से 1080 रुपये पहली जनवरी 1986 से 11 से 2300 रुपये तथा पहली जनवरी 1996 से 4500 से 7000 रुपये का वेतनमान लागू करने के लिए कार्य विभागों से प्रस्ताव प्राप्त हुए हैं। वित्त विभाग के 18 फरवरी 1981 के आदेश के प्रावधान के आलोक में पटना उच्च न्यायालय ने कतिपय मामलों में कार्य विभागों के कनीय एवं वरीय लेखा लिपिकों का एकीकरण मानते हुए 28 सितम्बर 1999 के पूर्व के कनीय लेखा लिपिकों को 4500 से 7000 रुपये का वेतनमान देने का आदेश पारित किया है। फरवरी 1981 के वित्त विभाग के आदेश में कार्य विभागों के कनीय एवं वरीय लेखा लिपिकों का उल्लेख नहीं है। यह आदेश सिर्फ समाहरणालय एवं अन्य मुफस्सिल कार्यालय से संबंधित है न कि कार्य विभागों से। विभिन्न वेतन समितियों की रिपोर्ट की चर्चा करते हुए स्पष्ट किया गया है कार्य विभाग के लिपिकों का एकीकरण नहीं हुआ अत: इनके पृथकीकरण का आदेश जारी करने का कोई औचित्य नहीं है(दैनिक जागरण,पटना,7.8.2010)।
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