इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग द्वारा स्त्री रोग विशेषज्ञ पद केवल महिलाओं के लिए आरक्षित रखने को अवैध, अतार्किक व संविधान के विपरीत बताते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह चाहे तो स्त्री रोग एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ पद को पुरुष व महिला कैडर में विभाजित कर सकती है या महिलाओं को वरीयता देने की व्यवस्था कर सकती है। ऐसा करने से इस क्षेत्र से पुरुषों को पूरी तरह से बाहर नहीं करना होगा, लेकिन महिलाओं के लिए 100 फीसदी सीट आरक्षित नहीं की जा सकती। इसी के साथ न्यायालय ने लोक सेवा आयोग को निर्देश दिया है कि वह याची को स्त्री रोग विशेषज्ञ पद पर साक्षात्कार के लिए बुलाए और सफल पाए जाने पर उसे बैच में चयन कर नियुक्ति के लिए भेजा जाए। यह आदेश न्यायमूर्ति सुनील अम्बवानी तथा न्यायमूर्ति काशीनाथ पांडेय की खंडपीठ ने डा. आलोक कुमार सिंह की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। न्यायालय ने कहा है कि सभी पदों को महिलाओं के लिए सुरक्षित रखना पुरुष डॉक्टरों को प्रतियोगिता में भाग लेने के अवसर से वंचित करना है। न्यायालय ने यह भी कहा है कि चिकित्सा शिक्षा में स्त्री रोग विशेषज्ञता कोर्स में स्त्री पुरुष दोनों प्रवेश लेते हैं। यदि पुरुष डॉक्टर विशेषज्ञ होते हैं तो महिलाएं भी उनसे इलाज कराने में परहेज नहीं करेंगी। उल्लेखनीय है कि उप्र लोक सेवा आयोग ने उप्र चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवा कैडर के 244 पद विज्ञापित किए थे जिसमें से 160 पद स्त्री रोग विशेषज्ञ पर केवल महिलाओं के आवेदन मांगे। याची भी स्त्री रोग विशेषज्ञ है। सुल्तानपुर में प्राइवेट प्रैक्टिस कर रहा है। उसने इसे चुनौती दी और कहा कि सभी पदों को महिलाओं के लिए आरक्षित नहीं किया जा सकता, क्योंकि ऐसा कोई कानून नहीं है। पुरुषों को रोकना असंवैधानिक व मूल अधिकारों का हनन है। न्यायालय ने याचिका स्वीकार कर ली(दैनिक जागरण,राष्ट्रीय संस्करण,6.8.2010)।
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