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06 अगस्त 2010

उर्दू के लिए एक हुआ सदन

लोकसभा गुरुवार को कुछ समय के लिए पूरी तरह उर्दू जबान में बात करती नजर आई। यह मौका था जब सपा नेता मुलायम सिंह यादव की पहल पर सदन में सभी पार्टियों के सदस्य उर्दू की मौजूदा स्थिति और इसके बढ़ावे पर चर्चा में शामिल हो गए। यहां तक कि केंद्र के कई मंत्रियों के साथ ही कई भाजपा नेताओं ने भी उर्दू के लिए जम कर आंसू बहाए। मुलायम ने गुरुवार को लोकसभा की कार्यवाही शुरू होते ही ऊर्दू और इस भाषा में निकलने वाले प्रकाशनों की स्थिति को ले कर चर्चा करवाने की मांग कर दी। हालांकि बाद में उन्हें प्रश्नकाल के बाद यह मुद्दा उठाने के लिए मना लिया गया। अपने ध्यानाकर्षण प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान मुलायम बोले, कहा जाता है कि जिस कौम को खत्म करना हो, उसकी भाषा को खत्म कर दो। आज उर्दू के साथ यही हो रहा है। उन्होंने उर्दू अखबारों को विज्ञापन बंद कर दिए जाने का मसला भी उठाया। हालांकि उनकी ओर से की गई शुरुआत के बाद एक-एक कर सभी पार्टियों के नेताओं ने इस मामले से अपनी हमदर्दी जतानी शुरू कर दी। मुलायम की ही तरह तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बनर्जी ने भी इस चर्चा के बहाने मुसलमानों को आरक्षण की मांग रख दी। केंद्रीय मंत्री फारूक अब्दुल्ला और गुलाम नबी आजाद ने भी इस मामले पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत बताई। आजाद ने कहा कि कुछ दिनों पहले ही उर्दू अखबारों के प्रतिनिधियों ने उनसे मुलाकात कर अपनी समस्या बताई है। वे सूचना और प्रसारण मंत्री से मिल कर इस बारे में सही कदम उठाने की अपील करेंगे। भाजपा की ओर से गोपीनाथ मुंडे और शत्रुघ्न सिन्हा ने भी इसे पूरे हिंदुस्तान की भाषा बताते हुए इसके संरक्षण के लिए सरकार की ओर से कदम उठाए जाने को जरूरी बताया। भाकपा, माकपा, राजद और बसपा नेताओं ने भी अपनी-अपनी पार्टी की ओर से इस पर चिंता जता दी(दैनिक जागरण,राष्ट्रीय संस्करण,6.8.2010)।

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