अगर आपको पढ़ना -लिखना अच्छा लगता है, तो संभव है कि आपका मन लेखक बनने का भी करता हो। यह ऐसा फील्ड है, जिसमें किसी इंस्टिट्यूट से पढ़ाई की खास भूमिका नहीं होती। आपको मन की कल्पनाओं को कागज पर उकेरने की कला सीखनी पड़ती है। आइए, जानते हैं इस फील्ड में करियर की संभावनाओं के बारे में :
लेखक बनने के लिए सबसे पहले पढ़ने-लिखने में रुचि होनी चाहिए। लेखक को घुमक्कड़ प्रवृत्ति का और अनुशासित होना चाहिए। हर दिन कुछ न कुछ लिखना बहुत जरूरी है। ज्यादातर युवा सोचते हैं कि लिखने के लिए अच्छे मूड का होना जरूरी है, लेकिन यह दरअसल एक भ्रम है। लिखना एक कला है। ठीक उसी तरह, जैसे कढ़ाई-बुनाई या लकड़ी पर नक्काशी उभारना। अच्छे लेखन के लिए भी लगातार अभ्यास करना पड़ता है। सिर्फ तभी आप हर बार पहले से बेहतर लिख सकते हैं।
इस करियर के लिए अनुशासन भी बहुत महत्वपूर्ण है। आप जितने अनुशासित होंगे, उतने ही मजबूत होंगे। कई बार कुछ अच्छा नहीं लिख पाते या बार-बार लिखना पड़ता है, यह कमी भी लगातार अभ्यास से ही दूर होती है। अगर आप क्षमतावान हैं, तो भी कड़ी मेहनत से नहीं भाग सकते।
किस विषय पर लिखें
एक लेखक को अपनी अंतरात्मा की आवाज सुननी चाहिए। जाने-माने लेखक रामचंद्र गुहा के शब्दों में, 'मेरा मानना है कि भारत की विविधता यहां रहने वाले हर लेखक का सौभाग्य है। भारत में सुंदरता और डर का अद्भुत मिश्रण है। मानवीय भावनाओं की भी भारतीय संस्कृति में कमी नहीं है। किसी लेखक, कलाकार या निर्देशक के लिए भारत के अलावा कोई और जगह इन मामलों में बेकार है। अगर आप लेखक बनना चाहते हैं, तो भारत में आपका जन्म होना एक सौभाग्य है। चाहे पॉजिटिव हो या निगेटिव, भारत में हर तरह के इमोशंस मौजूद हैं। यहां इतनी विविधता है कि बतौर लेखक आप खुद को एक दायरे में बांधकर रख ही नहीं सकते। मैंने भी पर्यावरण पर लिखा है, तो महात्मा गांधी और खेल भी मेरे प्रिय विषय रहे हैं।'
पसंद करें अकेलापन
लेखन अकेलेपन का पेशा है। बेजान चीजें ही आपके साथ होती हैं, जैसे - पेन, कागज और कंप्यूटर। दिन के ज्यादातर समय आपके साथ सिर्फ आप ही होते हैं। दूसरे करियर्स में आपके लिए एक ऑफिस होता है, जहां आपके संगी-साथी होते हैं। अगर आप यूनिवर्सिटी या कॉलेज में हैं, तो वहां भी कलीग्स के अलावा ढेर सारे स्टूडेंट्स होते हैं। इसी तरह, लगभग सभी पेशों में आपके साथ हंसने-बोलने-बातें करने के लिए दूसरे लोग भी होते हैं। लेखन में आपको तन्हाई पसंद करनी पड़ती है(नवभारत टाइम्स,दिल्ली,4.8.2010)।
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