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02 सितंबर 2010

"नई दुनिया" की 'भाषा नीति' श्रृंखला-1

सितंबर आते ही हिन्दी को लेकर चिंता शुरू हो जाती है। दिवस, सप्ताह और पखवाड़े की उठापटक के बीच हिन्दी को लेकर रुदन और विलाप ही ज़्यादा होता है। आज आवश्यकता इस बात की है कि दिवस, सप्ताह और पखवाड़ा मनाने के इस बहाने को थोड़ा और सार्थक रूप दिया जाए। इसलिए,दैनिक नई दुनिया ने घोषणा की है वह हिन्दी को लेकर कुछ व्यावहारिक तथ्य सामने लाने की कोशिश आज से लेकर १४ सितंबर तक लगातार करेगा । इस श्रृंखला में भाषा नीति के अंतर्गत आप हिन्दी से जुड़े रोचक तथ्यों से अवगत होंगे, साथ ही दैनंदिन जीवन में हिन्दी के उपयोग और उसकी स्थिति की पड़ताल करती ख़बरें भी लगातार आप तक पहुंचेंगी। इन ख़बरों को लेकर या हिन्दी के बारे में अपने विचार से आप दैनिक को letter@naidunia.com पर भी अवगत करा सकते हैं। यह ब्लॉग नई दुनिया की इस पहल का स्वागत करता है। पाठक नई दुनिया में प्रकाशित श्रृंखला को इस ब्लॉग पर भी पढ़ सकेंगे। आज पढ़िए इसकी पहली कड़ी जिसमें मुहावरे पर संक्षेप में प्रकाश डाला गया हैः


क्यों जलते हो!

मुहावरों के प्रयोग में सावधानी अधिक रखनी पड़ती है। मुहावरे के शब्दों में किसी भी तरह का फेरबदल नहीं किया जाना चाहिए। अन्यथा मुहावरा अपना अर्थ खो देगा और पाठक को बात भी समझ में नहीं आएगी। एक मुहावरा है "नाच न जाने आंगन टेढ़ा।" इसमें न आप "नाच" को बदल सकते हैं, न "आंगन" को और न ही "टेढ़ा" को। यह नहीं कह सकते हैं कि "नाच न जाने आंगन तिरछा।" एक और उदाहरण है "फूलकर कुप्पा हो जाना।" कुप्पा को लिंगभेद में "कुप्पी" या वचन भेद में "कुप्पे" नहीं कहा जा सकता है। "कुप्पा" की जगह "गुब्बारा" या "फुटबॉल" जैसा कोई और शब्द भी नहीं रख सकते हैं। हिन्दी की एक पुस्तक में इसी प्रकार का एक दिलचस्प उदाहरण पढ़ने को मिला। "उसके गले में दर्द है।" और इसी बात का दूसरा प्रकार "उसके गले में कितना दर्द है।" पहले वाक्य में "दर्द" का अर्थ "दर्द" ही है यानी शारीरिक तकलीफ से है। जबकि दूसरे वाक्य में "दर्द" का उपयोग विशेष अर्थ में किया गया है, मुहावरे के रूप में गले में कितना दर्द है, यानी उस रस, उस भाव को पैदा करने वाले तत्व से आशय है। "जल जाना" भी ऐसा ही एक और उदाहरण है। "गरम चाय से जीभ "जल" गई।" यानी शारीरिक पीड़ा हुई। इसे इस तरह प्रयोग करें, "वह उन्नाति देख "जल" गया।" यहां जल जाने का अर्थ शारीरिक पीड़ा से नहीं है। ऐसे कई प्रयोग हैं जो विशिष्ट होते हैं और अर्थ भी कुछ खास देते हैं (-क्रमशः)।

1 टिप्पणी:

  1. Delhi gengreap me sabhi Ne virodh pradarshan kiya magar kisi ne virodh pradarshan karte vakt ye nahi socha ki jiske karan ye sab hoa he uspar rok lagaya jaye matlab sharab.kisi ne sharab par rok lagane ke bare me nahi socha.agar sharab par rok lagai jaye to bahut had tak ye crime rokenge.sarkar ne gutkha,tobacco par to rok lagadi par sharab par kyo nahi lagai.gutkha tobacco se to keval ek aadmi hi marta he magar sharab se to pura pariwar hi mar jata he.esiliye sabse pahle sharab rok lagani jarori he.
    chirag nahata
    39,deepti parisar ujjain(m.p.)

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