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13 सितंबर 2010

'नई दुनिया' की "भाषा नीति" श्रृंखला-10

कफ से कफ़ तक!

हिन्दी में बिन्दी के दम पर इस स्तंभ में चर्चा पूर्व में की जा चुकी है। लेकिन पुस्तकें पढ़ने के दौरान एक महत्वपूर्ण और दिलचस्प उदाहरण मिला है, जिसका यहाँ उल्लेख आवश्यक है। इस उदाहरण में हिन्दी, उर्दू (फारसी, अरबी भी) के साथ अँगरेजी भी शामिल है। नुक्ता उर्दू की जान है। वह अर्थ में भी बड़ा परिवर्तन करने की ताकत रखता है। "फ" और "फ़" में नुक्ता क्या कमाल कर देता है, यह इस उदाहरण से पता चल जाता है। शब्द है "कफ"। संस्कृत मूल का कफ "वात पित्त कफ" वाला कफ है। अरबी में जिसे "बलग़म" कहते हैं। फारसी में इस क़फ का अर्थ फेन होता है।

अरबी में नुक्ते वाले "क़फ" का अर्थ हाथ का पंजा है और अँगरेजी में आस्तीन का वह निचला हिस्सा, जिसमें बटन लगते हैं। अँगरेजी में "क़फ" (स्पेलिंग अवश्य अलग है, लेकिन हिन्दी में लिखे और बोले जाने वाले शब्द के आधार पर यहाँ लिया गया है) का एक और अर्थ है "खाँसी"। "फन" का मूल संस्कृत में है और अर्थ साँप के फन से है। जबकि फारसी का फ़न (यानी नुक्ते वाला) हुनर, कला के अर्थवाला है- हरफ़नमौला। दफा यानी कानून की धारा, प्रावधान और दफा का एक अर्थ है बार, मर्तबा। लेकिन नुक्ते वाली दफ़ा (अरबी) किसी को दूर करने, ढकेलने के लिए है- "दफ़ा हो जाओ"। गड़बड़ उन शब्दों में भी हो जाती है जो हिन्दी के ही हैं, किसी अन्य भाषा से नहीं लिए गए हैं। एक उदाहरण है "कोश" और "कोष"। प्रारंभ में दोनों के अर्थ समान माने जाते थे। आवरण, कली, गर्माशय, गेंद, जायफल, भंडारगृह, म्यान आदि। लेकिन चलन में अब यह तय है कि "कोश" यानी शब्दकोश वाला और "कोष" यानी कोषालय वाला। ख़ान और खान में भी अंतर है। ख़ान यानी अध्यक्ष, अमीर, प्रतिष्ठित व्यक्ति। खाँ वाला ख़ान। जबकि "खान" खदान वाला खान है। "ख़ुद" (स्वयं) और "खुद" (खोदने का अर्थ) में अंतर स्पष्ट है(दिल्ली संस्करण,13.9.2010)।

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