कहीं उम्र गच्चा ना दे दे। क्योंकि, जो तैयारी है वो वर्तमान पर भी भारी पड़ सकती है। सूबे में जेपीएससी द्वारा विभिन्न सेवाओं के लिए उम्रसीमा में जो छूट दी गई है वो झारखंड आरक्षी सेवा के लिए भी लागू है और पुलिस सेवा के लिए सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों के लिए अधिकतम 40, ओबीसी के लिए 43 और एससीएसटी के अभ्यर्थियों के लिए 45 साल उम्र निर्धारित कर दी है। चयनित डीएसपी की पीटीएस (पुलिस ट्रेनिंग सेंटर) और फील्ड ट्रेनिंग के बाद औसतन 3 साल बाद फील्ड में भेजा जाता है। यानी अगर कोई 45 साल का कोई डीएसपी चुना जाता है तो उसे 48 साल की उम्र में फील्ड में भेजा जाना पड़ेगा। ये उस राज्य की कड़वी हकीकत है जहां 24 में से 18 जिले सक्रिय नक्सलवाद की चपेट में हैं। जहां नक्सलियों की औसत उम्र 18 साल है। यानी यंग और फाइटर नक्सलियों का मुकाबला डीएसपी की अगली खेप में जिनसे होगा वो उनसे दुगने से भी अधिक उम्र के होंगे। ऐसे साहबों के जिम्मे फोर्स का नेतृत्व कैसे होगा? ये पहाडि़यों पर कैसे चढ़ेंगे? कैसे दौड़ेंगे? कैसे मूवमेंट बदलेंगे? पुलिस मुख्यालय के आला अधिकार अब इसी पसोपेश में हैं। लेकिन चूंकि मामला बेहद संवेदनशील है, लिहाजा मुख्यालय इस मामले में चुप रहना बेहतर समझ रहा है। लेकिन सबको ये चिंता जरूर सता रही है कि जब ये बूढ़े अफसर फील्ड में जाएंगे तो फिर ये उनसे क्या और कितनी अपेक्षा रख सकते हैं। आपको बता दें कि झारखंड में मौजूदा समय में डीएसपी के कुल 349 पद स्वीकृत हैं। इनमें सीधी बहाली से 174 और प्रमोशन से 175 पद भरे जाते हैं। फिहलहाल 69 पद खाली हैं। सच्चाई ये है कि अभी भी जितने डीएसपी फील्ड में हैं उनमें से 75 फीसदी 45 साल की उम्र पार कर चुके हैं। उनकी फिटनेस पर मुख्यालय समय-समय पर चिंता जाहिर करता रहा है। लेकिन अब जो कुछ होने वाला है उसे सोचकर पुलिस के आला अधिकारियों के पेशानी पर अभी से बल पड़ना शुरू हो गया है। एक आला अधिकारी ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि किसी भी दूसरी सेवा के लिए उम्र सीमा बढ़ाने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन आरक्षी सेवा में इसके दुष्परिणाम भी हो सकते हैं। इधर इस बारे में पूछे जाने पर आईजी (अभियान) सह पुलिस प्रवक्ता आर.के.मल्लिक ने सिर्फ इतना कहा कि उम्मीद की जानी चाहिए कि सेवा में कम उम्र के लोग ही चुनकर आएं(राजीव किशोर,दैनिक जागरण,रांची,15.9.2010)।
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