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12 सितंबर 2010

बिहार: मुलाजिमों के हड़ताली रुख से सरकार की धुकधुकी बढ़ी

बिहार के मुलाजिमों के हड़ताली रुख ने सरकार की धुकधुकी बढ़ा दी है। राज्य में अराजपत्रित कर्मचारी और शिक्षक गुजरी 23 अगस्त से हड़ताल पर हैं। अभी इनका मामला सुलझा नहीं ऊपर से सूबे के अभियंताओं ने भी 21 सितंबर से हड़ताल पर जाने का सरकार को अल्टीमेटम दे दिया है। स्थिति की नाजुकता को भांप कर सरकार ने हड़ताली कर्मचारियों से सुलह के प्रयास शुरू कर दिए हैं। सरकार की सबसे बडी चिंता विधानसभा के चुनाव हैं। सरकार जानती है कि कर्मचारी नहीं माने तो चुनाव के लिए पोलिंग पार्टियों को प्रबंध करना ही मुश्किल हो जाएगा। दरअसल, विधानसभा चुनाव के मतदान को करीब 57 हजार बूथों की व्यवस्था की जाएगी। इनके लिए पोलिंग पार्टी के रूप में ही करीब पौने तीन लाख कर्मचारियों की जरूरत होगी। हड़ताली नेताओं की मानें तो तीन लाख शिक्षक कर्मचारी हड़ताल पर हैं। सिर्फ पोलिंग पार्टी को ही मतदान के लिए भेजने के पूर्व तीन दौर की ट्रेनिंग दी जाती है। इसके अतिरिक्त विभिन्न तरह की दर्जन भर ट्रेनिंग भी मिलती है। ऐसे में समय पर चुनावी प्रशिक्षण में बाधा की स्थिति बन रही है। चुनाव की घोषणा हो चुकी है। समय ज्यों-ज्यों गुजरता जाएगा परेशानी बढ़ती जाएगी। राज्य में अराजपत्रित कर्मचारी और शिक्षक गोपगुट और मंजुल गुट के काल पर 23 अगस्त से ही हड़ताल पर हैं। हड़ताल का मुख्यालय में भले ही खास असर नहीं है ,मगर जिलों की स्थिति एकदम उलट है और वहां इसका असर साफ दिखाई दे रहा है। चुनाव के मद्देनजर जिलों में धीरे-धीरे चुनाव अधिकारियों ने कार्य के लिए हड़तालियों पर सख्ती शुरू कर दी है। शुक्रवार को सरकार के साथ वार्ता के दौरान कर्मचारी नेताओं ने कई जिलों से मिल रही शिकायतों के हवाले से अपनी नाराजगी जाहिर की है। दूसरी तरफ छठे वेतन के नाम पर अपने साथ हुए अन्याय को लेकर बिहार के अभियंता एकजुट होकर 21 सितंबर से हड़ताल पर जाने वाले हैं। यह अभियंत्रण सेवा समन्वय समिति के बैनर तले हड़ताल पर जा रहे हैं। हालांकि आचार संहिता का ब्रेक उनकी रफ्तार को प्रभावित कर रहा है। वेतन-भत्ता को लेकर नाराज चल रहे डाक्टरों के साथ जुगलबंदी कर इनकी एक साथ हड़ताल पर जाने की तैयारी है। हालांकि अभी इनकी नजर हड़ताली संगठनों के साथ सरकार की वार्ता पर लगी हुई है। बिहार अभियंत्रण सेवा संघ के महासचिव राजेश्र्वर मिश्र का कहना है कि उनकी सेवा के लोगों के साथ अन्याय हुआ है। हड़ताल के नोटिस के बावजूद वार्ता तक के लिए सरकार ने आमंत्रित नहीं किया है। आयोग को पत्र लिख दिया गया है कि चुनाव के लिए वैकल्पिक व्यवस्था कर लें। महामंत्री अनिल सिंह के नेतृत्व वाले सचिवालय सेवा संघ, सचिवालय के चतुर्थवर्गीय व अन्य सचिवालयीय संगठनों ने 23 सितंबर के बाद हड़ताल का ऐलान कर रखा है। हालांकि मौजूदा परिस्थिति और 2009 के 34 दिनों की हड़ताल के लटके हुए वेतन के कारण सचिवालय में हड़ताल होगी, कहना आसान नहीं है। वहीं दो दिन पूर्व वित्त विभाग के प्रधान सचिव से हुई सकारात्मक वार्ता के बाद बिहार राज्य सरकारी कर्मचारी महासंघ शैलेन्द्र ओझा गुट ने साफ कर दिया है कि सचिवालयकर्मी हड़ताल पर नहीं जाएंगे। इसके विपरीत गोपगुट के महासचिव रामबली सिंह की मानें तो आचार संहिता से कर्मचारी मांगों पर फर्क नहीं पड़ता। 1994 और 2005 में आचार संहिता के दौरान ही आयोग के हस्तक्षेप के बाद समझौता हुआ और मांगों के संबंध में आदेश जारी किया गया। पांच सालों तक सरकार संघ की मांगों से किनारा करती रही। ऐसे में पूरी जिम्मेदारी राज्य सरकार की है। हड़ताल से लौटने के बाद फील्ड के अधिकांश कर्मचारी हाजिरी बनाकर हड़ताल अवधि का वेतन उठा लेने के सवाल पर रामबली प्रसाद ने कहा कि यह सरकार के इशारे पर होता है। जिलाधिकारी की रिपोर्ट आती है कि 97 और 98 फीसदी हड़ताल है, मगर बाद में भुगतान हो जाता है। ऐसा पथ, भवन, सिंचाई, पीएचईडी, ग्रामीण कार्य, विद्युत कार्य जैसे कार्य विभागों में होता है। लालू प्रसाद के शासन में भी हुआ, नीतीश सरकार में भी(नवीन कुमार मिश्र,दैनिक जागरण,पटना,१२.९.२०१०)।

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