राजधानी के उच्च शिक्षण संस्थानों में मुखियाओं की तलाश लेटलतीफी का शिकार बन गया है। नए मुखिया के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय में बैठक पर बैठक तो हो रही है पर तलाश कब पूरी होगी यह पता नहीं। नियुक्ति में देरी को लेकर शिक्षाविदें ने सरकार की नियत को कटघरे में ख़ड़ा करना शुरू कर दिया है।
राजधानी में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय, एनसीईआरटी, न्यूपा और एनबीटी जैसे संस्थानों को इन दिनों नए मुखिया की जरूरत है। इनमें एनसीईआरटी में पिछले मार्च से निदेशक नहीं है। प्रो कृष्ण कुमार का कार्यकाल खत्म होने के बाद नए निदेशक की नियुक्ति अभी तक नहीं हो पाई है। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में भी मौजूदा कुलपति बीबी भट्टाचार्य का कार्यकाल २९ जून को खत्म हो गया है। ढाई माह गुजर गए हैं लेकिन मानव संसाधन विकास मंत्रालय नये कुलपति की खोज नहीं कर पाया है। विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद ने नए कुलपति के लिए सर्च कमेटी के दो सदस्यों के नाम पांच माह पहले ही सरकार को भेज दिया है लेकिन बताया जाता है कि विजिटर की ओर से एक और नाम अभी तय नहीं किया गया है। इस कारण से नए कुलपति के चयन का मामला अधर में लटका प़ड़ा है।
दिल्ली विश्वविद्यालय का हाल भी कुछ ऐसा ही है। यहां सर्च कमेटी द्वारा दो सदस्यों के नाम दो माह पहले ही भेज दिए गये हैं। विजिटर नॉमिनी की नियुक्ति भी हो गई है पर चयन समिति नए कुलपति का नाम अब तक तय नहीं कर पाई है। इसके लिए कई बैठकें हो गई है। मौजूदा कुलपति का कार्यकाल ३१ अगस्त को ही खत्म हो गया है। यहां कुलपति से शिक्षकों के बीच तकरार जारी है। इस कारण से कॉलेजों में प़ढ़ाई लिखाई का काम भी बाधित हो गया है। लेकिन सरकार का ध्यान इस ओर नहीं है। एनसीईआरटी कैंपस में स्थित राष्ट्रीय शैक्षिक योजना एवं प्रशासन विश्वविद्यालय यानी न्यूपा में भी इस समय कोई कुलपति नहीं है।
कुलपति के रूप में कार्य कर रहे वेदप्रकाश विश्वविद्यालय अनुदान आयोग में उपाध्यक्ष बनकर चले गए हैं। इन विश्वविद्यालयों के अलावा पब्लिकेशन से जु़ड़ी एक और महत्वपूर्ण संस्था नेशनल बुक ट्रस्ट में भी निदेशक पद पिछले छह माह से खाली प़ड़ा है। नुज्हत हसन के जाने के बाद मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने यहां नए निदेशक की नियुक्ति को अभी तक हरी झंडी नहीं दी है। शिक्षक नेता विजेन्द्र शर्मा कहते हैं, सरकार इन संस्थानों में अपना कठपुतली फिट करना चाहती है। इन पदों पर ऐसे लोगों को लाना चाह रही है जो शिक्षा के क्षेत्र में सरकार के एजेंडे को बिना किसी बाधा के लागू कर सके(अनुपम कुमार,नई दुनिया,दिल्ली,16.9.2010)।
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