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09 सितंबर 2010

'नई दुनिया' की "भाषा नीति" श्रृंखला-7

एक अर्थ, दो शब्द

जब भाषा के प्रति चेतना सुप्त हो, तब हास्यास्पद गलतियां होती हैं। संभव है कि लिखने या बोलने वाले को इसका भान तक न हो। हिन्दी के व्याकरण में इस दोष का उल्लेख है। एक ही अर्थ देने वाले दो शब्दों का साथ साथ उपयोग यह स्थिति पैदा करता है। कुछ उदाहरणों से इस बात को आसानी से समझा जा सकता है। "आपका भवदीय" पत्र के अंत में पढ़कर समझ में आ जाता है कि या तो भवदीय का अर्थ पत्र लेखक को मालूम नहीं है या भाषा के प्रति उसकी चेतना जाग्रत नहीं है। "शत्रु से खतरे का डर है" में शत्रु है तो खतरा है, "डर" के लिए जगह कहां बचती है। "वे लोग साहब के अधीनस्थ हैं।" "उन्हें अपने अहंकार पर गर्व है।" "कृपया उत्तर शीघ्र देने की कृपा करें।" "सद्व्यवहार का बर्ताव करें।" "उसे व्यर्थ-सहायता देने से कोई लाभ नहीं है।" रेखांकित शब्दों पर गौर करें। वाक्यों में पदक्रम में गड़बड़ी भी एक आम भूल है। "एक पानी का गिलास लाओ" में "एक" का स्थान "गिलास" के पहले है, पानी के पहले नहीं। "कई स्कूल के विद्यार्थी ऐसा करते हैं। यहां दो विकल्प हैं। किस विकल्प की आवश्यकता है, यह या तो लेखक जानता है या उस वक्त की परिस्थिति। पहला विकल्प है, "स्कूल के कई विद्यार्थी...।"

दूसरा विकल्प है "कई स्कूलों के विद्यार्थी...।" "आप इस प्रदेश की शिक्षक के रूप में सेवा कर रहे हैं।" सही स्वरूप है, "आप शिक्षक के रूप में इस प्रदेश..." एक और वाक्य पढ़िए, "मेरे विचार से शायद काम जरूर हो जाएगा।" इसमें "शायद" और "जरूर" के बीच विरोधाभास है। या तो "शायद" की आवश्यकता है या "जरूर" की। दोनों साथ-साथ नहीं चल सकते हैं। "आप जहां तक हो सके इस बात का प्रयत्न करें।" पदक्रम ठीक रखें तो वाक्य होगा, "जहां तक हो सके आप...।" कभी-कभी आसान वाक्य रचना तथा आसान शब्दों को छोड़कर ज्ञान की शेखी बघारी जाती है, "पक्षी अपना नीड़ निर्माण कर रहा है", अरे भाई "पक्षी अपना घोंसला बना रहा है", लिखने में क्या तकलीफ है?(दिल्ली संस्करण,9.9.2010)

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