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10 सितंबर 2010

'नई दुनिया' की "भाषा नीति" श्रृंखला-8

पूर्ण-अपूर्ण पर्याय

हिन्दी के व्याकरण में दो तरह के पर्याय दिए गए हैं। एक- पूर्ण, दो-अपूर्ण। अर्थ और प्रयोग में एक रहने वाले पूर्ण पर्याय होते हैं, जबकि अर्थ और प्रयोग में अंतर वाले अपूर्ण पर्याय होते हैं। कुछ उदाहरणों से स्पष्ट होगा कि गलती कैसे होती है। पढ़ने के अर्थ के दो और शब्द हैं- अध्ययन और अनुशीलन। अध्ययन और पढ़ने में अंतर यही है कि अध्ययन में ध्यान अधिक देना होता है, गंभीरता भी तुलनात्मक रूप से अधिक होती है। अनुशीलन में पढ़ने का आधार ही गंभीरता और सूक्ष्मता होती है। अपराध और पाप में अंतर यह है कि सामाजिक नियमों (समाज के उचित संचालन से जुड़े नियमों का ही नाम कानून है, अतः कानून भी यहां सम्मिलित है) का उल्लंघन अपराध कहलाता है, जबकि नैतिक मूल्यों का उल्लंघन पाप कहलाता है। "उपहार" प्रायः बराबर वालों को और प्रसन्नाता के साथ दिया जाने वाला उपहार है, जबकि "भेंट" प्रायः बड़ों को, नम्रता के साथ दिया जाने वाला उपहार है। "करुणा" किसी के दुःख में होने वाली व्याकुलता है, जबकि "दया" किसी के दुःख को लेकर तरस खाना है। "कारण" वह है जिससे कार्य है लेकिन "हेतु" वह उद्देश्य है जिसके लिए कार्य किया जाता है। भाषा में व्याकरण के साथ-साथ प्रचलन के आधार पर भी कुछ निर्णय किए जाते हैं। इसलिए संभव है कि प्रचलन के आधार पर प्रयुक्त शब्द को व्याकरण के आधार पर चुनौती दी जा सके। "मंत्रणा" में गोपनीयता का भाव अनिवार्य है, लेकिन "परामर्श" में ऐसी अनिवार्यता नहीं है। "अनुभव" इंद्रियों के माध्यम से होता है, जबकि "अनुभूति" अनुभव की तीव्रता से होती है। "आधि" मानसिक कष्ट को कहते हैं, व्याधि शारीरिक कष्ट को। "ईर्ष्या" दूसरे की उन्नाति देखकर जलना है, जबकि "द्वेष" कारणवश बैरभाव से होने वाली ईर्ष्या है। "काम" सामान्य कथन है, जबकि "पेशा" किसी काम या हुनर विशेष को करने की योग्यता है(दिल्ली संस्करण,10.9.2010)।

1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस कक्षा में आकर बहुत सी जनकारी मिलती है जो इस भाषा को समझने में मददगार साबित हो रही है।
    आभार इस उच्चस्तरीय पोस्ट के लिए।

    अंक-8: स्वरोदय विज्ञान का, “मनोज” पर, परशुराम राय की प्रस्तुति पढिए!

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