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10 सितंबर 2010

डिजिटल होता भाषाई मीडिया

बेहतर होते संचार साधनों ने परंपरागत भाषाई मीडिया को भी अपनी पहुंच बढ़ाने में मदद की है। पाठक तक अखबार का पहुंचना अब छपी हुई प्रति के पहुचने जैसा नहीं रहा है। आप अपना मनपसंद अखबार दुनिया के किसी भी कोने से पढ़ सकते हैं, बिना इस बात की चिंता किए कि आपके हॉकर के पास वह उपलब्ध होगा या नहीं।

सूचना प्रौद्योगिकी के बदलते स्वरूप से अब आप लगभग हर हिंदी समाचार पत्र का ई-संस्करण इंटरनेट पर पढ़ सकते हैं। कंप्यूटर पर भी ये समाचारपत्र ठीक वैसे ही दिखाई देते हैं जैसे आपको वे परंपरागत छपे हुए स्वरूप में दिखाई देते हैं। आप वैसे ही पृष्ठ पलट सकते हैं, फोटो देख सकते हैं और मनपसंद खबरें और आलेख पढ़ सकते हैं।

अखबारों के ये डिजिटल संस्करण पाठकों के लिए उनके मुद्रित रूप से कई मायनों में बेहतर हैं। न तो उन्हें अखबार खरीदना होता है और न ही इस बात की चिंता करनी होती है कि हॉकर अखबार डालकर गया है या नहीं। इंटरनेट के माध्यम से यह बिना किसी झंझट के पाठकों तक समय पर पहुंच जाता है। किसी मुद्दे पर टिप्पणी देना भी केवल एक क्लिक भर का काम है और कुछ ही पल में अखबार के दफ्तर में आपकी बात पहुंच जाती है। अखबारों को परंपरागत रूप में पसंद न करने वाले युवा और इंटरनेट सेवी पाठकों के लिए लगभग सभी हिंदी अखबारों ने अपने पोर्टल भी पेश किए हैं। इन पोर्टलों पर न सिर्फ समाचार, बल्कि हर पसंदीदा विषय पर सामग्री पा सकते हैं। संचार का त्वरित माध्यम होने के कारण अपने पोर्टलों के माध्यम से अखबार अपने पाठकों तक हर पल ताजा समाचार पहुंचाते हैं। आप इनकी आरएसएस सदस्यता लेकर अपने मेलबॉक्स या मोबाइल पर भी हिंदी समाचार प्राप्त कर सकते हैं।

इनकी ही तरह सभी प्रमुख हिंदी पत्रिकाओं के भी पोर्टल मौजूद हैं। यहां आप उनके मुद्रित संस्करणों में छपे हर आलेख पढ़ सकते हैं। डिजिटलीकरण होने से अखबारों और पत्रिकाओं के संस्करणों को ढूंढना भी बहुत आसान हो गया है। जहां आप अखबारों के आर्काइव पर जाकर उनके पुराने संस्करण देख सकते हैं वहीं खोज इंजिन में आप केवल कुछ संबंधित शब्द डालकर सीधे इच्छित समाचार पर पहुंच सकते हैं(जितेन्द्र जायसवाल,नई दुनिया,दिल्ली,10.9.2010)।

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