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04 सितंबर 2010

अब भी स्कूल का मुंह नहीं देख पाए 81 लाख बच्चे

शिक्षा में सुधार और बदलावों को लेकर केंद्र और राज्य सरकारें शोर चाहे जितना मचा रही हों, लेकिन बुनियादी पढ़ाई की तस्वीर अब भी बदरंग है। इस स्थिति का सीधे तौर पर कोई असर भले न दिखता हो, पर यह सच्चाई अखरने वाली है कि आजादी के छह दशक बाद भी 81 लाख बच्चों को स्कूल नहीं नसीब हो पाया है। इस दागदार स्थिति के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार उत्तर प्रदेश और बिहार राज्य हैं, क्योंकि स्कूल से महरूम बच्चों में से आधे से अधिक इन्हीं दोनों राज्यों से हैं। सरकार इस बात से खुश है कि पांच साल पहले छह से 13 साल की उम्र के लगभग सवा करोड़ बच्चे स्कूल से वंचित थे, बाद में उनकी संख्या घटकर 95 लाख तक आ गई। और अब यह 81 लाख तक आ गई है, लेकिन उसका यह तर्क संतोषजनक नहीं कहा जा सकता। दरअसल इस मामले में राज्य सरकारें भी गंभीर नहीं दिखतीं। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि देश में छह से 13 साल तक के कुल बच्चों में से 81 लाख 50 हजार बच्चे (4.28 प्रतिशत) अब भी स्कूल नहीं जा रहे हैं। उनमें भी अकेले उत्तर प्रदेश में 27 लाख, 69 हजार बच्चे पढ़ाई-लिखाई की उम्र में स्कूल से बाहर हैं। जबकि बिहार में 13 लाख 45 हजार बच्चों को अब भी स्कूल नहीं नसीब हो सका है। इस मामले में बिहार सरकार की गंभीरता का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि 2006 में वहां 23 लाख बच्चे स्कूल से वंचित थे, जो अब साढ़े तेरह लाख तक आ पाए हैं। इस लिहाज से बिहार को अभी अगले कुछ वर्षो तक इस स्थिति से निजात मिलने वाली नहीं है। अन्य राज्यों में पश्चिम बंगाल में सात लाख, झारखंड में एक लाख 32 हजार, गुजरात में एक लाख 62 हजार, महाराष्ट्र में दो लाख सात हजार और आंध्र प्रदेश में एक लाख 72 हजार बच्चे स्कूल से वंचित हैं। सरकार का मानना है कि शिक्षा का अधिकार कानून अब अमल में आ चुका है और आने वाले वर्षों में छह से चौदह साल के सभी बच्चों को मुफ्त व अनिवार्य शिक्षा मिलने लगेगी। हालांकि इसी साल अप्रैल से लागू हुए इस कानून के अमल को लेकर तरह-तरह की व्यावहारिक दिक्कतें भी आ रही हैं। फिलहाल सरकार उन्हीं से निपटने में उलझी हुई है(दैनिक जागरण,दिल्ली,4.9.2010)।

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