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11 सितंबर 2010

आईआईटी में होगी मेडिकल की पढ़ाई

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आईआईटी) की संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जेईई) को लेकर उठ रहे सवालों के बीच उसमें सुधार के नए प्रस्ताव पर भी सहमति नहीं बन सकी है। हालांकि, आईआईटी काउंसिल ने इन संस्थानों में मेडिकल की भी पढ़ाई को हरी झंडी दे दी। साथ ही दस प्रतिशत विदेशी शिक्षक व पोस्ट ग्रेजुएट स्तर पर 25 प्रतिशत विदेशी छात्रों के दाखिले की छूट पर भी मुहर लगा दी। काउंसिल ने प्रो. आचार्या की सिफारिशों को खारिज करते हुए एक नई कमेटी का गठन भी किया, जो तीन माह में अपनी रिपोर्ट देगी। मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने शुक्रवार को आईआईटी काउंसिल की बैठक के बाद पत्रकारों को इस संबंध में जानकारी दी। उनके मुताबिक, आईआईटी में मेडिकल की पढ़ाई को हरी झंडी दे दी गई है। हालांकि, यह पढ़ाई मेडिकल प्रैक्टिस के लिए नहीं होगी। इसके लिए आईआईटी कानून में संशोधन होगा। अलबत्ता यदि किसी पढ़ाई का ताल्लुक मेडिकल प्रैक्टिस या अलग डिग्री से होगा तो उसे मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया से वैसी ही मंजूरी लेनी होगी, जैसी मेडिकल कॉलेज को लेनी होती है। काउंसिल ने आईआईटी फैकल्टी में दस प्रतिशत विदेशी शिक्षक व पोस्ट ग्रेजुएट में 25 प्रतिशत विदेशी छात्रों के दाखिले को भी मंजूरी दी है। हालाकि विदेशी शिक्षकों व छात्रों का मामला सुरक्षा से भी जुड़ा है, इसलिए इस पर गृह मंत्रालय से मशविरा करके इसे अंतिम रूप दिया जाएगा। सिब्बल ने माना कि प्रो. आचार्या की सिफारिश के तहत इंटरमीडिएट की परीक्षा में 70 प्रतिशत अंकों को तरजीह, उसके बाद राष्ट्रीय अभिरुचि परीक्षा (एप्टीट्यूट टेस्ट) और फिर उसके बाद भी आईआईटी के लिए एक अलग से परीक्षा के प्रस्ताव पर सहमति नहीं थी। अलबत्ता, काउंसिल इस बात पर सहमत थी कि बच्चों व अभिभावकों को कोचिंग व उसके लिए बड़े पैमाने पर धन खर्च के दबाव से निजात मिलनी चाहिए। लिहाजा आईआईटी-जेईई में इंटरमीडिएट की परीक्षा के अंकों को तरजीह के साथ ही उनकी अभिरुचि परीक्षा हो सकती है। इस असहमति के चलते केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सचिव डॉ. रामास्वामी की अगुआई में एक समिति बना दी गई है। वह तीन महीने में रिपोर्ट देगी। राज्य स्कूली शिक्षा बोर्डो से भी मशविरा किया जाएगा। प्रौद्योगिकी व इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए अलग-अलग लगभग 150 परीक्षाएं होती हैं। ऐसे में मुख्य मकसद छात्रों का अभिभावकों को कोचिंग व धन खर्च के तनाव व दबाव से मुक्ति दिलाना है। आईआईटी के फंडिंग पैटर्न को नियम-कायदों के दायरे में भी लाने पर विचार हुआ है। शिक्षकों की प्रोन्नति आदि में उनके कार्य प्रदर्शन का भी आकलन हो सकेगा। इसके अलावा एक शिक्षकों के साथ कई तकनीशियनों की जरूरत होती है। जबकि वित्त मंत्रालय आईआईटी के लिए जो बजट देता है, उसमें तकनीशियन को भी आईआईटी स्टाफ माना जाता है। इसे बदले जाने की जरूरत है। लिहाजा आईआईटी में अलग से एक तकनीशियन कैडर बनाने पर भी सहमति हुई है(Dainik jagran,11.9.2010)।

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