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15 सितंबर 2010

प्रौद्योगिकी के साथ हिंदी की कदमताल

हम प्रायः हिंदी के अतीत और अनागत की चर्चा करते समय उसके वर्तमान की उपेक्षा-सी कर जाते हैं। सुख-सुविधापूर्वक रहते हुए हमारा स्वभाव बन गया है कि हमें हर वस्तु बनी-बनाई मिल जाए। हमें कोई परिश्रम नहीं करना पड़े। हम अपनी त्रुटि कभी आने वाली पी़ढ़ी पर और कभी गुजर गई पीढ़ी पर बिना देरी किए डाल देते हैं। यदि फिर भी मन न भरे तो एक अरब से अधिक लोगों की समस्याओं से जूझती हमारी सरकार पर डालकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं। अतीत पर बहुत कुछ लिखा जा चुका है। वर्तमान युग सूचना, संचार व प्रौद्योगिकी का है। विज्ञापन द्वारा खोटा माल खपाने का समय है, न कि साहित्यिक रचना पढ़ने का। आजकल एसएमएस से अपने भाव दूसरे की भाषा में व्यक्त करने का चलन चल गया है। हिंदी के प्रचार- प्रसार में भारत सरकार इसके लिए प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए व्यय करती है। किंतु इस नई सुबह में समय नहीं है कि हम छिद्रान्वेषण एवं टीका-टिप्पणी करने में अधिक समय नष्ट करें । समय आ गया है कि भारत सरकार व प्रदेश सरकार की आलोचना करने के स्थान पर उसकी वरद छत्रछाया में स्वावलंबी बनकर प्राणपण से हिंदी का प्रसार-प्रचार करें। हमें समय की पुकार सुनकर जागरूक हो जाना चाहिए और हिंदी के वर्तमान को सुधार कर सुरक्षित स्वर्णिम भविष्य की नींव डालनी चाहिए।

सूचना प्रौद्यागिकी का भारतीय भाषाओं में प्रसारण भारतीय जनमानस को साक्षर एवं जाग्रत बनाने के लिए एक बहुत अच्छा रास्ता हो सकता है। इसका सीधा-सा उदाहरण बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा हिंदी में विज्ञापन प्रकाशित किया जाना है। हम जानते हैं कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों का मकसद हिंदी प्रेम नहीं बल्कि आम आदमी तक अपने उत्पादों को पहुंचाना है। सूचना प्रौद्योगिकी का भारतीय भाषाओं में प्रसारण के लिए उचित साधनों यथा-सॉफ्टवेयर, हार्डवेयर व शिक्षक का होना आवश्यक है जो कि हिंदी भाषा में सुचारु रूप से कार्य कर सकें। यह काम दुनिया के कई देशों में किया जा चुका है जैसे जापान, कोरिया, लगभग सारे यूरापीय देश एवं हमारा पडोसी चीन जहां सब कुछ स्वभाषा में सुचारु रूप से चल रहा है। कोरिया, जापान आदि देशों का पूरा का पूरा कंप्यूटर तंत्र उनकी भाषा में काम कर सकता है। जब यह काम वहां हो सकता है तो हमारे देश में क्यों नहीं हो सकता? अब हिंदीभाषी भी कंप्यूटर खरीद रहे हैं, इंटरनेट और मोबाइल तकनीक थ्री-जी को अपना रहे हैं।

लिहाजा तकनीक का इस्तेमाल करने वालों की तादाद बढ़ी है । बाजार का कोई भी दिग्गज इसकी अनदेखी नहीं कर सकता। अतः लिनक्स, एडोबी ने हिंदी के नए उत्पाद बनाए है। इस हिंदी दिवस पर सूचना प्रौद्योगिकी का प्रयोग कर हिंदी को विश्व के अनुकूल बनाना ही हमारा प्रमुख ध्येय होना चाहिए(अलका दर्शन श्रीवास्तव,नई दुनिया,दिल्ली,15.9.2010)।

1 टिप्पणी:

  1. .
    @-सूचना प्रौद्योगिकी का प्रयोग कर हिंदी को विश्व के अनुकूल बनाना ही हमारा प्रमुख ध्येय होना चाहिए...

    पूर्णतया सहमत हूँ आपसे। हिंदी पे गर्व करना है। और हिंदी का प्रचार प्रसार करना है। वो दिन दूर नहीं जब हिंदी एक अंतर्राष्ट्रीय भाषा बनकर सर्वत्र अपना परचम लहराएगी।

    इस सुन्दर पोस्ट के लिए आपका आभार।
    ..

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