आईपी यूनिवर्सिटी के उन स्टूडेंट्स को हाई कोर्ट ने राहत दी है, जिन्हें नए क्राइटेरिया के तहत अगले क्लास में प्रमोट नहीं किया गया था। हाई कोर्ट ने स्टूडेंट की अर्जी स्वीकार करते हुए उन्हें अगले क्लास में प्रमोट करने का निर्देश दिया है।
आईपी यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाते हुए कहा था कि पिछले साल यूनिवर्सिटी ने स्टूडेंट के अगली क्लास में प्रमोशन को लेकर नया पैमाना तय किया है। लेकिन इस बारे में उन्हें ठीक से बताया नहीं गया था और इस साल जब उनका रिजल्ट आया है तो उन्हें अगली क्लास में प्रमोट नहीं किया गया। 2009 में यूनिवर्सिटी ने अगली क्लास में प्रमोट करने का जो क्राइटेरिया तय किया है, उसे 2009-2010 सेशन के दौरान हुए पेपर पर लागू न किया जाए। सौ से ज्यादा स्टूडेंट ने हाई कोर्ट में अर्जी दाखिल की और बताया कि जब उन्होंने 2009 में एडमिशन लिया था तब यह नियम था कि कोई भी पेपर क्लियर न होने पर भी अगली क्लास में स्टूडेंट्स को प्रमोट कर दिया जाएगा। हालांकि स्टूडेंट को तय समयसीमा में वह पेपर क्लियर करना होगा। लेकिन यूनिवर्सिटी ने 29 जून 2009 को फैसला लिया कि पहले साल में स्टूडेंट को 50 फीसदी पेपर क्लियर करने होंगे, तभी उन्हें अगली क्लास में प्रमोशन मिलेगा। याचिका में कहा गया था कि इस कारण करीब 3,500 स्टूडेंट्स प्रमोट नहीं हो पाए(नवभारत टाइम्स,दिल्ली,15.9.2010)।
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दिल्ली हाईकोर्ट ने टेक्नीकल और प्रोफेशनल कोर्स के १०७ छात्रों को राहत देते हुए गुरू गोविंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय से इन सभी छात्रों को सत्र २०१०-११ में प्रमोट करने का निर्देश दिया है।
न्यायमूर्ति राजीव सहाय इंडलॉ ने १०७ छात्रों द्वारा विश्वविद्यालय के खिलाफ दाखिल याचिका को स्वीकार कर लिया है। विश्वविद्यालय ने बीटेक, एमबीए, एमसीए सहित अन्य कोर्स के करीब ३५०० छात्रों को प्रमोट करने से इनकार कर दिया था। विश्वविद्यालय का तर्क था कि प्रबंधन बोर्ड ने अगले अकादमी सत्र के लिए इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय अधिनियम में प्रमोट करने से संबंधित प्रावधानों का संशोधन किया था। इसी संशोधन के तहत उन्होंने छात्रों को प्रमोट नहीं किया। दूसरी ओर छात्रों की दलील थी कि इस बारे में न तो उन्हें और न ही कॉलेजों को इसकी जानकारी दी गई। उनका कहना था कि विश्वविद्यालय का यह निर्णय गैरकानूनी और मनमाना है(नई दुनिया,दिल्ली,15.9.2010)।
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