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12 सितंबर 2010

भाषा से सुलभ होती स्वास्थ्य सुविधाएं

आईटी में हिंदी के बढ़ते उपयोग का सबसे सकारात्मक असर दूरवर्ती क्षेत्रों के लोगों को स्वास्थ्य सेवाएं देने पर पड़ा है। बेहतर भाषाई अनुप्रयोगों और बेतार इंटरनेट का उपयोग उन लोगों तक स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचाने के लिए किया जा रहा है जो बड़े शहरों से काफी दूर रहते हैं और अन्यथा वहां ऐसी सुविधाएं बिल्कुल नहीं या नाममात्र को होती हैं।

जॉनसन एंड जॉनसन, क्लिनफोन जैसी कंपनियों ने निजी स्वास्थ्य की देखभाल के अपने लोकप्रिय उत्पाद अब हिंदी में प्रस्तुत किए हैं। मधुमेह का रोगी घर बैठे अपने ग्लूकोज की मात्रा पर नजर रख सकता है और दिल के रोगी एक छोटे से उपकरण से स्वयं यह ध्यान रख सकते हैं कि उन्हें कब डॉक्टर की मदद लेनी है। इन कंपनियों के इसी तरह के कई अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरण भी हैं जिन्हें आप क्रॉनिक बीमारियों के लिए आसानी से उपयोग कर सकते हैं जिनके लिए आमतौर पर आपको डॉक्टर के चक्कर लगाने पड़ते हैं। ये उपकरण न सिर्फ आपका पैसा बचाते हैं बल्कि अस्पतालों में घंटों प्रतीक्षा करने में लगने वाला समय भी बचता है।

इन उपकरणों की एक खास विशेषता यह है कि इन्हें आप बड़ी आसानी से इंटरनेट से कनेक्ट कर सकते हैं। इससे आपको जरूरत पड़ने पर आपके परीक्षण के आंकड़े आपके डॉक्टर तक तुरंत पहुंचाने और उनसे मदद प्राप्त करने में सुविधा हो जाती है। छोटे-छोटे गांवों में जहां डॉक्टरों का अभाव है, लैपटॉप, वेबकैम और वायरलेस इंटरनेट के माध्यम से स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के जरिए बड़े अस्पतालों से जोड़ने के प्रयोग जारी हैं।

बड़े शहरों से दूर रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य पर ऑपरेशन के पहले और बाद में नजर रखने के लिए भी इन उपकरणों की मदद ले रहे हैं।निजी स्वास्थ्य देखभाल की इन सुविधाओं के अलावा इंटरनेट पर सरकार और अन्य स्वास्थ्य पेशेवर कंपनियों द्वारा लोगों में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता फैलाने का काम पूरी तरह हिंदी में किया जा रहा है। यहां पर आप अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने के तरीकों से लेकर बीमारी और उसके उपचार के बारे में आरंभिक जानकारी अपनी भाषा में प्राप्त कर सकते हैं। सिप्ला ने हाल ही में ब्रीदफ्री नाम से एक पहल शुरू की है जिसमें इंटरनेट के माध्यम से हिंदी में लोगों में अस्थमा के प्रति जागरूकता लाने का प्रयास किया जा रहा है। हिंदी में उपलब्ध होती इन सुविधाओं से उन लोगों को बड़े शहरों से जोड़ने में मदद मिल रही है जो दूरवर्ती क्षेत्रों में रहते हैं और जहां शिक्षा का स्तर कम है(जितेन्द्र जायसवाल,नई दुनिया,दिल्ली,११.९.२०१०) ।

2 टिप्‍पणियां:

  1. मातृभाषा तो कामधेनु है। इसमें अपार संभावनाएं हैं जिनका हमे ज्ञान नहीं है। यदि चिकित्सकीय सामग्री को अपनी भाषा में उपलब्ध करा दिया जाय तो बहुत कम पढ़े-लिखे व्यक्ति भी डोक्तर बन सकते हैं। यदि विभिन्न युक्तियों (कार, ट्रैक्तर, वायुयान, टीवी, फिज, रेडियो, सीडी प्लेयर, इन्वर्टर, आदि) के बारे में समुचित जानकारी मातृभाषा में उपलब्ध हो जाय तो कपढ़े-लिखे लोग भी 'रिसर्च' करना शुरू हो जाँय। उद्यमिता और रचनाशीलता का चहुं-ओर बोलबाला हो जाय।

    यदि शिक्षा और सारी चर्चाएँ अपनी भाषा में हों तो देश में समाजशास्त्रियों, प्रबन्धकों, शिक्षाशास्त्रियों, दार्शनिकों की कमी का रोना न हो।

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  2. ज्ञानवर्धक लेख बहुत सुंदर

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