वीजा फीस में वृद्धि के सदमे से उबरने की कोशिश कर रहे भारतीय आईटी उद्योग को अमेरिका से दूसरा झटका लगा है। अमेरिका के ओहियो राज्य ने सरकारी आईटी परियोजनाओं की आउटसोर्सिग पर रोक लगा दी है। अगर अमेरिका के अन्य राज्यों ने भी ऐसा ही रुख अपनाया तो भारतीय कंपनियों के लिए यह काफी बुरा साबित हो सकता है। ओहियो राज्य के फैसले के मुताबिक अब वहां के सरकारी विभाग अपने आईटी और बैक ऑफिस संबंधी कामकाज को अन्य देशों में स्थित कंपनियों को नहीं सौंप सकते। इसका मतलब यह हुआ कि भारतीय कंपनियां इस राज्य के सरकारी विभागों से आईटी परियोजनाओं के ठेके हासिल नहीं कर पाएंगी। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने मई, 2010 में ही उन कंपनियों को टैक्स छूट देने से इनकार किया था, जो दूसरे देशों से आउटसोर्सिग के आधार पर काम कराती हैं। इसके बाद पिछले महीने ही अमेरिका में बॉर्डर सिक्योरिटी बिल के तहत एच1-बी वीजा के लिए फीस को बढ़ाकर दो हजार डॉलर कर दिया गया है। भारतीय आईटी कंपनियां इसी वीजा का इस्तेमाल अपने कर्मचारियों के लिए करती हैं। ऐसा होने के बाद आईटी कंपनियों की परियोजनाओं की लागत भी बढ़ गई है। अभी आईटी कंपनियां इस नुकसान की भरपाई के उपायों पर विचार ही कर रही थीं कि अब ओहियो राज्य का यह नया फरमान उनके लिए मुसीबत बन कर सामने आया है। हालांकि इस राज्य में अभी सिर्फ टाटा समूह की आईटी कंपनी टीसीएस के कर्मचारी ही अच्छी खासी संख्या में काम कर रहे हैं। हां, अगर ओहियो की राह पर चलते हुए अमेरिका के अन्य राज्यों ने भी आउटसोर्सिग पर रोक जैसा कदम उठाया तो यह भारतीय आईटी उद्योग के लिए काफी नुकसानदेह साबित हो सकता है। एक अन्य प्रमुख भारतीय कंपनी विप्रो भी मिसूरी राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं के लिए कई अरब डॉलर वाले नौ साल के एक बड़े प्रोजेक्ट पर काम कर रही है। आईटी उद्योग के प्रतिनिधि संगठन नासकॉम ने एक बयान जारी करके ओहियो के इस फैसले को उलटे अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए नुकसानदेह बताया। नासकॉम का मानना है कि इससे अमेरिकी जनता पर टैक्स का बोझ और बढ़ेगा। इसी महीने अमेरिका के दौरे पर जा रहे नासकॉम का एक प्रतिनिधिमंडल अमेरिकी सरकार के साथ इस मुद्दे को उठाएगा। इस मामले में संगठन वाणिज्य व उद्योग मंत्री आनंद शर्मा की मदद लेने की कोशिश भी करेगा, जो उन्हीं दिनों अमेरिका के दौरे पर होंगे। भारतीय आईटी कंपनियों का 60 प्रतिशत से ज्यादा कारोबार अमेरिका से ही आता है। आईटी कंपनियों का यह कारोबार करीब 50 अरब डॉलर सालाना का है, लेकिन सरकारी विभागों से मिलने वाले कामकाज का हिस्सा इसमें काफी छोटा है। इसके बावजूद अगर अमेरिका में इस तरह की प्रवृत्ति मजबूत होती है तो यह भारतीय आईटी उद्योग को आगे चलकर प्रभावित कर सकता है। यही वजह है कि आईटी उद्योग ने ओहियो के इस कदम को काफी चिंताजनक माना है। प्रमुख आईटी फर्म इन्फोसिस के सीईओ व एमडी एस. गोपालकृष्णन का कहना है कि कंपनी ओहियो के इस फैसले से स्तब्ध है(दैनिक जागरण,राष्ट्रीय संस्करण,9.9.2010)।
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