राजधानी में बिना पंजीकरण के करीब तीस हजार निजी स्कूली वैन बच्चों को घर से स्कूल और स्कूल से घर छोड़ने के काम में लगे हैं। नियमों को ताक पर रखकर हर वैन में औसतन आठ से दस बच्चों को बिठाया जाता है। इन स्कूली वैन में न सुरक्षा इंतजाम होते हैं और न ही वैन चालक प्रशिक्षित होता है। चालकों का पुलिस से सत्यापन भी नहीं कराया जाता है। ऐसे में राजधानी के करीब तीन लाख बच्चे रोज भगवान भरोसे ही निजी स्कूली वैन में घर से स्कूल व स्कूल से घर का सफर तय करते हैं। ऐसे में कई बार वह हादसे के भी शिकार हो जाते हैं। बता दें कि राज्य परिवहन प्राधिकरण के पास केवल 5741 स्कूली वैन पंजीकृत हैं। राजधानी में सभी सरकारी स्कूलों व कई निजी स्कूलों में बच्चों को घर से स्कूल पहुंचाने व वापस घर छोड़ने के लिए बस या वैन की व्यवस्था नहीं है। कई निजी स्कूलों में स्कूली वैन तो हैं, लेकिन उनका मासिक किराया बहुत ज्यादा है। कुछ लोगों के घर के पास स्कूल की बस नहीं आती। इस तरह के तमाम कारण हैं, जिसके कारण मां-बाप अपने बच्चों को निजी वैन से स्कूल भेजने को मजबूर हैं। कुछ अभिभावक पैसे व समय की बचत के लिए निजी स्कूली वैन पर बच्चों को भेजना पसंद करते हैं। कुछ वैन चालक परिचित होते हैं तो कुछ छोटी-मोटी कंपनियों से लिए जाते हैं। अभिभावक स्कूली वैन से बच्चों को स्कूल भेजकर निश्चित हो जाते हैं, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या ये बच्चे सुरक्षित हाथों में हैं। स्कूल प्रशासन अपनी जिम्मेदारी बच्चों के स्कूल आने के बाद ही मानता है। बच्चों के घर से स्कूल व स्कूल से घर तक पहुंचने के दौरान सुरक्षा की जिम्मेदारी तय नहीं है। ऐसे में इस दौरान बच्चों की सुरक्षा भगवान भरोसे होती हैं। वहीं इन स्कूली वैन चालकों का न पुलिस सत्यापन कराया जाता है और न ही उन्हें प्रशिक्षण दिया जाता है। ऐसे में बच्चों को ऐसे हाथों में सौंपने के लिए अभिभावक भी कम जिम्मेदार नहीं हैं। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी का कहना है कि नौकरी करने वाले अधिकतर अभिभावक निजी स्कूली वैन का सहारा लेते हैं। कई बार उनके पास इतना समय नहीं होता कि वे बच्चों को स्कूल तक पहुंचा सकें। खास बात यह है कि वैन चालकों द्वारा बच्चों के साथ बदसलूकी के जितने भी मामले सामने आए हैं, उनमें अधिकतर आरोपी पहली बार पकड़े गए हैं। ऐसे में अभिभावकों को सावधान रहने की जरूरत है। स्कूली वैन में मोटी कमाई को देखते हुए लोग वैन खरीदकर और चालक को रखकर काम शुरू कर देते हैं। इन पर स्कूल प्रशासन का नियंत्रण नहीं होता, लेकिन इनके बारे में उन्हें बता दिया जाता है। मॉडल टाउन क्षेत्र के राज व उनकी पत्नी सुमित्रा दोनों नौकरी करते हैं। वे अपने दो बच्चों को निजी स्कूली वैन से ही भेजते हैं। शुक्रवार को सामने आए मामले के बाद दोनों सदमे में हैं। उनका कहना है कि अब उन्हें कोई दूसरा रास्ता खोजना पड़ेगा(राकेश कुमार सिंह,दैनिक जागरण,दिल्ली,18.9.2010)।
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