राहत पैकेज की बदौलत ग्लोबल मंदी से उबरने की जो कूबत भारतीय अर्थव्यवस्था ने दिखाई है, उसका फायदा आम जनता को भी होता दिख रहा है। तेज आर्थिक विकास के चलते निजी क्षेत्र में रोजगार के अवसरों में काफी सुधार हुआ है। पिछले वित्त वर्ष 2009-10 के दौरान अर्थव्यस्था के प्रमुख आठ क्षेत्रों में लगभग 11 लाख नई नौकरियां दी गई हैं। केंद्र सरकार का मानना है कि चालू वित्त वर्ष 2010-11 के दौरान जब आर्थिक विकास की दर नौ फीसदी के करीब रहने की उम्मीद है, देश में रोजगार की स्थिति और सुधर सकती है। वित्त मंत्रालय के वरिष्ठ आर्थिक सलाहकार एचएसी. प्रसाद ने दैनिक जागरण को बताया कि ग्लोबल मंदी से देश की अर्थव्यवस्था को निकालने के लिए जिन औद्योगिक क्षेत्रों पर सबसे अधिक ध्यान दिया गया था, उनमें रोजगार के अवसर ज्यादा बढ़े हैं। बीते वित्त वर्ष में ऑटोमोबाइल, चमड़ा, धातु, आईटी व बीपीओ, रत्न एवं आभूषण, हैंडलूम, पावरलूम और कपड़ा क्षेत्र में 10.66 लाख नई नौकरियां दी गई हैं। ये आंकड़े श्रम व रोजगार मंत्रालय के हैं। हमेशा की तरह रोजगार संबंधी ये आंकड़े भले ही काफी देरी से आए हैं, लेकिन काफी उत्साहजनक हैं। इन आंकड़ों से पहली बार यह साबित हो रहा है कि उद्योग धंधों को मंदी से निकालने की सरकारी प्रोत्साहन नीति खासी असरदार रही है। श्रम व रोजगार मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक अक्टूबर से दिसंबर, 2008 में ग्लोबल मंदी चरम पर थी, तब उक्त आठों क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों में 4.91 लाख की कमी आई थी। उसी समय केंद्र सरकार ने प्रोत्साहन पैकेज देने का सिलसिला शुरू किया था। ये पैकेज उत्पाद शुल्क व सेवा कर में कटौती और ब्याज सब्सिडी के जरिए दिए गए। जनवरी-मार्च, 2009 में 2.76 लाख नई नौकरियां पैदा हुई। इसके बाद की तिमाही में हालांकि 1.31 लाख की कमी हुई, मगर जुलाई से सितंबर, 2009 में 4.97 लाख नौकरियों की फिर वृद्धि हुई। सबसे ज्यादा 6.38 लाख नौकरियां अक्टूबर से दिसंबर, 2009 की तिमाही में दी गई हैं। इसमें सबसे प्रमुख योगदान आईटी व बीपीओ क्षेत्र का रहा। इसमें 5.70 लाख नई नौकरियां मिलीं। कुल मिलाकर दिसंबर, 2008 से लेकर दिसंबर, 2009 के बीच 12.8 लाख नई नौकरियां दी गई। यह रिपोर्ट इस बात को भी सामने लाती है कि अगर ग्लोबल मंदी नहीं आती तो देश में 70 से 80 लाख नए रोजगार के अवसर पैदा होते। इससे देश में बेरोजगारी की समस्या को कम करने में काफी हद तक सफलता मिलती। रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2009-10 से 2014-15 के बीच हर वर्ष औसतन 1.1 करोड़ लोगों को रोजगार देने की जरूरत होगी। इसके लिए सरकार को 10 फीसदी की सालाना आर्थिक विकास दर हासिल करनी होगी(दैनिक जागरण,दिल्ली,18.9.2010)।
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