महाराष्ट्र सरकार ने गैर अनुदानित स्कूलों से दो-दो हाथ करने की ठान ली है। शिक्षा मंत्री राधाकृष्ण विखे पाटिल ने गुरुवार को कहा कि मनमानी फीस वृद्घि रोकने के लिए अब सरकार कानून ही बनायेगी। पाटिल के इस बयान से पालकों को निश्चित ही थोड़ी राहत मिली है। इसके साथ ही साफ हो गया है कि हाईकोर्ट ने भले ही सरकारी आदेश (जीआर) को रद्द कर दिया हो, मगर राज्य सरकार अभी हार मानने को तैयार नहीं है।
15 जुलाई २क्१क् को सरकार ने एक जीआर निकाला था। जिसमें कॅपिटेशन प्रतिबंधक कानून के तहत खुद को फीस नियंत्रण का अधिकार होने का दावा किया गया था। हाईकोर्ट के न्यायाधीश डी. के. देशमुख और न्यायाधीश एन.डी. देशपांडे की खंडपीठ ने इस सरकारी जीआर के खिलाफ अनएडेड स्कूल फोरन और शिक्षक संगठन द्वारा दायर याचिका में कहा कि भले ही सरकार को फीस नियंत्रण करने का अधिकार है। मगर वह इसे किसी दूसरी कमेटी को नहीं दे सकती है। दरअसल सरकार ने गैर अनुदानित स्कूलों को उनके उत्पन्न और खर्च के बीच तालमेल बैठाते हुए फीस वृद्घि करने का अधिकार दिया था। मगर इसके लिए शिक्षा विभाग के उप-संचालक से अनुमति लेना अनिवार्य कर दिया था। राज्य सरकार की इसी चूक को आधार बनाकर गैर अनुदानित स्कूलों ने कानूनी जंग के पहले मुकाबले में उसे पटखनी दे दी है(दैनिक भास्कर,मुंबई,3.9.2010)।
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