न्यायिक सेवा के प्रति लोगों का आकर्षण बढ़ रहा है। शेट्टी कमीशन के बाद न्यायमूर्ति पद्मनाभन समिति की अनुशंसा के आलोक में न्यायिक सेवा के अधिकारियों के वेतनमान और सुविधाओं में लगातार काफी वृद्धि हुई है। इस सेवा की अपनी गरिमा भी है। कुछ भत्तों में वृद्धि का मामला अभी विचाराधीन है। ये सुविधाएं और गरिमामय सेवा लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं। हालांकि न्यायिक सुधार की कड़ी में पीडि़त जनता को त्वरित राहत मिले इसके पीछे की मंशा है। अगर इस सेवा में आपका चयन हो गया तो बीच में नौकरी छोड़ना महंगा पड़ेगा। बीच में नौकरी छोड़ी तो प्रशिक्षण का खर्च और वेतन की राशि लौटानी पड़ेगी। राज्य सरकार ने बिहार न्यायिक भर्ती नियमावली में इस आशय का संशोधन कर दिया है। इसी सप्ताह इस संबंध में आदेश जारी कर दिया गया है। आदेश में कहा गया है कि असैनिक न्यायाधीश (कनीय कोटि) के संवर्ग का कोई अधिकारी यदि सेवा के तीन साल पूरा होने के पूर्व सेवा छोड़ देता है तो उस अवधि के लिए दी गई ट्रेनिंग आदि का खर्च वसूला जाएगा। साथ ही न्यायिक कार्य में अंग्रेजी के इस्तेमाल और इसके महत्व को देखते हुए न्यायिक परीक्षा में अंग्रेजी विषय को अनिवार्य कर दिया गया है। हाल में लंबी खींचतान के बाद सरकार ने न्यायिक सेवा में अन्य सरकारी सेवा की भांति 50 फीसदी का आरक्षण का प्रावधान कर दिया है(दैनिक जागरण,राष्ट्रीय संस्करण,3.9.2010 में पटना की ख़बर)।
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