नुरपूर बेट के प्यारे लाल जैसी बुरा किसी के साथ न हो। 20 अक्तूबर 1954 को जन्मे प्यारा सिंह ने सिविल सर्जन दफ्तर से अपने जन्म का सर्टिफिकेट मांगा।
जवाब मिला कि उसके जन्म से संबंधित रिकार्ड पंद्रह साल पहले आगजनी की एक घटना में जल गया था। अपने जन्म के 53 साल बाद प्यारा सिंह ने फिर से अपने जन्म की सरकारी रिकार्ड में एंट्री कराने की प्रक्रिया शुरू की। उसके लिए सिविल सर्जन दफ्तर से एक सर्टिफिकेट चाहिए था, जिस पर लिखा हो कि उसका रिकार्ड दफ्तर में उपलब्ध नहीं। यह सर्टिफिकेट 11 दिसंबर 2007 को बन भी गया लेकि उस तक नहीं पहुंचा। दैनिक भास्कर के संवाददाता ने यह सर्टिफिकेट सिविल सर्जन दफ्तर के पीछे टॉयलेट में पड़ा देखा है, जहां ऐसे कई प्यारे लालों केअनडिलीवर सर्टिफिकेट धूल चाट रहे हैं।
यह हाल उस जन्म मृत्यु से संबंधित रिकार्ड का है, जिस पर लोगों की जमीन जायदादों, विदेशी यात्रा या नौकरियों के फैसले टिके होते हैं। हमने इस कूड़े के ढेर में कई लोगों के आवेदन फार्म के साथ लगे दस्तावेज भी देखे। यह दस्तावेज आवेदन के साथ संलग्न नहीं करने पर पता नहीं अधिकारियों ने आवेदनकर्ता के कितने चक्कर लगवाए होंगे। कहा होगा कि इन दस्तावेजों के बिना उनका काम हो ही नहीं सकता, क्योंकि इनका रिकार्ड संभालकर रखना होता है। लेकिन अब वही जरूरी रिकार्ड कूड़े के ढेर में पड़ा है।
विशेष अभियान चलाकर बनाए सर्टिफिकेट नहीं बांटे: कूड़े के ढेर में कई जन्म मृत्यु के प्रमाण पत्र भी पड़े हुए हैं। ये वही प्रमाण पत्र हैं, जिन्हें कुछ साल पहले विशेष अभियान के तहत बनाया गया था। उस वक्त सरकार ने हर व्यक्ति को जन्म मृत्यु का सर्टिफिकेट उपलब्ध कराने के लिए प्रदेश भर में अभियान चलाया था।
इसमें स्कूलों से बच्चों का रिकार्ड एकत्रित किया गया। उसके बाद जिन बच्चों के पास सर्टिफिकेट नहीं था, उनका लिस्ट बनाई गई। उसके बाद मिनी सचिवालय में कई दिनों तक अलग अलग विभागों के कर्मचारियों की डच्यूटी लगाकर उन्हें प्रमाण पत्र तैयार करने का जिम्मा सौंपा गया। उस वक्त प्रमाण पत्र तैयार करते करते मुलाजिमों के हाथ थक गए थे, लेकिन जब यह प्रमाण पत्र बन गए, तब बच्चों तक पहुंचाए ही नहीं गए।
लाखों रुपये की स्टेशनरी कबाड़ कर दी: सरकार की ओर से चौकीदारों को जन्म व मृत्यु की एंट्री करने, जन्म मृत्यु प्रमाण पत्र व अन्य आवेदन फार्म समेत स्टेशनरी भी प्रिंट कराकर भेजी गई थी, लेकिन उसे भी कूड़े में फेंक दिया गया। जैसे विभाग ने यह रिकार्ड खुले में फेंका हुआ है, अगर यह खाली फार्म किसी के हाथ लग जाएं, तो वह इनका दुरुपयोग कर सकता है।
रिकार्ड वाले हॉल में रख दी नशीली दवाएं
अब सवाल उठता है कि यह रिकार्ड यहां पहुंचा कैसे? दैनिक भास्कर ने इसकी भी पड़ताल की। पता चला कि पहले यह रिकार्ड वर्कशाप से सटे एक बड़े हॉल में तरतीब से रखा हुआ था। लेकिन दो साल पहले एक विपदा सेहत विभाग के गले पड़ गई। विभाग ने कुछ दवा दुकानों पर रेड कर पचास लाख रुपये की नशीली दवाएं कब्जे में ले ली।
केस प्रापर्टी के तौर पर दवाओं को संभालकर रखना जरूरी था जबकि विभाग के पास जगह ही नहीं थी। पहले तो दवाएं सिविल सर्जन के घर के दो कमरे खाली कराकर रख दी गई लेकिन बाद में वर्कशाप के हाल को खाली कर दवाएं उसमें शिफ्ट कर दी। हॉल में पड़े रिकार्ड को वहां से निकालकर मुलाजिमों के दो टूटे क्वार्टरों व एक टॉयलेट में रख दिया गया। उसमें भी रिकार्ड नहीं आया तो उसे गठरियों में बांधकर खुले आसमान के नीचे ही रख दिया गया।
जगपाल सिंह, डिस्ट्रिक्ट हेल्थ अफसर
सवाल: जन्म मृत्यु का रिकार्ड खुले में कैसे फेंक दिया गया?
जवाब: ऐसा हरगिज नहीं हो सकता।
सवाल: पर हमारे पास फोटोग्राफ मौजूद हैं।
जवाब: अगर यह हुआ है तो जबरदस्त लापरवाही है। जन्म मृत्यु का रिकार्ड बेहद अहम होता है। इसे इस तरह नहीं फेंका जा सकता। मुझे खुद यह जानकर हैरानी हुई है।
सवाल: क्या इस रिकार्ड का दुरुपयोग नहीं हो सकता?
जवाब: अगर किसी के हाथ खाली फार्म लग जाए तो वह जाली साइन व मोहर लगाकर कुछ भी कर सकता है।
सवाल: विभाग की नजर आज तक क्यों नहीं पड़ी। यह किसकी लापरवाही है।
जवाब: मैंने अभी हाल ही में ज्वाइन किया है। रिकार्ड को संभालने की जिम्मेदारी बाकायदा फिक्स होती है।
सवाल: रिकार्ड को इस तरह फेंके जाने पर क्या कार्रवाई करेंगे?
जवाब: ऐसे मामले में पूछताछ करने पर मुलाजिम अमूमन जिम्मेदारी एक दूसरे पर डाल देते हैं। सिविल सर्जन से बातचीत करके इस लापरवाही के लिए जिम्मेदारी फिक्स की जाएगी और कर्मचारी के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी(विपन जंड,दैनिक भास्कर,लुधियाना,9.9.2010)।
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