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14 सितंबर 2010

दिल्ली में कहानी और छत्तीसगढ़ में उपन्यास ज्यादा पसंद किए जाते हैं

राष्ट्रभाषा हिन्दी की लगातार दुर्दशा पर आंसू बहाने वालों की कमी नहीं। इस संदर्भ में हिन्दी की वर्तमान स्थिति पर हमने अपने संवाददाताओं के माध्यम से सर्वे करवाया जिसमें एक सुखद तथ्य यह सामने आया कि तमाम विषम परिस्थितियों के बावजूद हिन्दी की स्वीकार्यता बढ़ी है, यही नहीं अंग्रेजीदां भी अब इस भाषा का महत्व समझने लगे हैं। स्वीकार्यता बढ़ने के साथ-साथ इसके व्यावहारिक पक्ष पर भी लोगों ने खुलकर राय व्यक्त की , मसलन लोगों का मानना है कि हिन्दी के अखबारों में अंग्रेजी के प्रयोग का जो प्रचलन बढ़ रहा है वह उचित नहीं है लेकिन ऐसे लोगों की भी तदाद भी कम नहीं है जो भाषा के प्रवाह और सरलता के लिए इस तरह के प्रयोग को सही मानते हैं। जो भी हो नेताओं को व्यस्तता के कारण हिन्दी की किताबें पढ़ने का मौका भले ही न मिलता हो लेकिन आधुनिक संचार माध्यमों ने हिन्दी को एक लोकप्रिय भाषा तो बना ही दिया है।

राजधानी दिल्ली के लोग साहित्य की सभी विधाओं में रुचि रखते हैं। हां, अगर क्रमवार बात की जाए तो उन्हें सबसे ज्यादा कहानी प़ढ़ना पसंद है। इस मेट्रो शहर के लगभग दो-तिहाई लोग हिन्दी अखबारों में अंग्रेजी शब्दों के इस्तेमाल को ठीक नहीं मानते और करीब ४७ प्रतिशत लोग यह मानते हैं कि हिन्दी दिवस या हिन्दी पखवा़ड़े के आयोजन से हिन्दी के प्रचार-प्रसार में मदद मिलती है। करीब ६० प्रतिशत लोग मानते हैं कि हिन्दी की हैसियत व्यावहारिक रूप से ब़ढ़ी है। साहित्यकारों को जानने की जहां तक बात है तो दिल्लीवाले सभी हस्तियों को जानते हैं।

नईदुनिया की ओर से कराए गए सर्वे में साहित्य प़ढ़ने को लेकर पूछा गया था कि क्या प़ढ़ना पसंद करेंगे। कहानी के बाद दिल्लीवालों की रुचि के क्रम में दूसरे नंबर पर कविता आती है जबकि लघु कथाओं को पसंद करने वालों की संख्या तीसरे पायदान पर है। नाटक के प्रति रुचि सबसे कम है। सर्वे के तहत दूसरे सवाल के रूप में लोगों से पूछा गया था कि क्या इन लेखकों को नाम और काम से जानते हैं। हिन्दी अखबारों में अंग्रेजी शब्दों के प्रचलन को दो-तिहाई लोग ठीक नहीं मानते, इस सवाल पर कुछ लोगों की राय स्पष्ट नहीं है, जबकि कुछ लोग इसे सही भी मानते हैं। सर्वे में शामिल किए गए लोगों में से करीब ५० फीसदी लोग मानते हैं हिन्दी दिवस या पखवा़ड़े के आयोजन से हिन्दी के प्रचार-प्रसार में मदद मिलती है। साथ ही यह भी मानते हैं कि आज हिन्दी की हैसियत व्यावहारिक रूप से ब़ढ़ रही है(केवल तिवारी,नई दुनिया,दिल्ली,12.9.2010)।
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छत्तीसग़ढ़ के सभी प्रमुख शहरों में किए गए सर्वे में तीन सौ प्रबुद्ध लोगों से सवाल किए गए। इसमें प्रमुख रूप से यह बात उभरी है कि आज भी लोग उपन्यास को प़ढ़ना ज्यादा पसंद करते हैं। इसके जवाब में एक तिहाई लोगों ने हामी भरी और अपनी पसंद बताई, जबकि दूसरे नंबर पर कविता प़ढ़ने वाले लोग रहे। दिलचस्प यह है कि कविता ने कहानी को पीछे छो़ड़ दिया। कहानी प़ढ़ने वालों की संख्या तीसरे नंबर पर चली गई। सबसे अंत में नाटक और लघुकथा प़ढ़ने वाले रहे, जिनकी संख्या सर्वे में क्रमशः४३ व ४२ पर सिमट गई।

ज्यादातर लोग हिन्दी के अखबारों में अंग्रेजी शब्दों के प्रचलन को गलत मानते हैं। १३७ लोगों का साफ कहना है कि यह सही नहीं है, जबकि प्रचलन के पक्ष में ११६ लोग सामने आए। ४७ लोगों को पता नहीं कि अंग्रेजी का प्रचलन सही है या नहीं। लोग इस बात से भी सहमत हैं कि हिन्दी पखवा़ड़े के आयोजन से हिन्दी के प्रचार व प्रसार में मदद मिलती है। सर्वाधिक १५७ लोग मानते हैं कि इस तरह का आयोजन होना चाहिए। हिन्दी की हैसियत व्यावहारिक रूप में ब़ढ़ रही है, इस सवाल के जवाब में १४० लोगों ने हां कहा। ९८ कहते हैं कि हैसियत नहीं ब़ढ़ रही।कहानी और उपन्यास दोनों प़ढ़ता हूं। हिन्दी लेखकों में मुंशी प्रेमचंद ज्यादा पसंद है। राजेंद्र यादव, नामवर सिंह, अशोक वाजपेयी, श्रीलाल शुक्ला सहित हिन्दी के ज्यादातर ब़ड़े लेखकों को जानता हूं।

-मोतीलाल वोरा, वरिष्ठ कांग्रेस नेता व राज्यसभा सदस्य

अब किताबें प़ढ़ने का समय नहीं मिलता, पहले उपन्यास और कहानी प़ढ़ते थे। हाल में कोई किताब नहीं प़ढ़ी, कुछ समय पहले "मृत्युंजय" प़ढ़ा था। राजभाषा समिति का सदस्य हूं, इस नाते लोगों से अपील करता हूं कि हिन्दी का सम्मान किया जाना चाहिए।

-रमेश बैस, भाजपा सांसद

कहानी व कविता ज्यादा पसंद हैं। मेरी रुचि आध्यात्मिक साहित्यों में है, जिनमें कबीर और ओशो साहित्य प्रमुख हैं। अभी मैं शिवाजी सामंत की "युगांधर" प़ढ़ रहा हूं।

- डॉ. चरण दास महंत, कांग्रेस सांसद

कविता अधिक पसंद है। जयशंकर प्रसाद, निराला, कबीर पसंदीदा हैं। हाल में कर्ण पर आधारित "मृत्युंजय" नामक किताब प़ढ़ी है, आलोचक नामवर सिंह को भी जानता हूं।

- अजीत जोगी, नेता कांग्रेस

कविता प़ढ़ने में ज्यादा रुचि है। कहानी व उपन्यास भी प़ढ़ते हैं। हिन्दी साहित्यकारों में जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी, सुमित्रानंदन पंत, मुंशी प्रेमचंद पसंद हैं। आधुनिक लेखकों में नामवर सिंह, राजेंद्र यादव, अशोक वाजपेयी को प़ढ़ते हैं।

- नंदकुमार साय, राज्यसभा सदस्य
(अरुण उपाध्याय,नई दुनिया,दिल्ली,12.9.2010)

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