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14 सितंबर 2010

राजस्थानःकिसी को पढ़ने की नहीं है फुर्सत

हिन्दी हमारी मातृभाषा है लेकिन इस भाषा के प्रति जनता के नुमाइंदों की उपेक्षा और आम जन के विलगाव के चलते हिन्दी भाषी क्षेत्रों में ही हालात न केवल अच्छे नहीं हैं बल्कि कुछ हद तक तो हास्यास्पद स्थिति में जान पडते हैं। सबसे ज्यादा चिंताजनक बात यह है कि हिन्दी भाषी इलाकों से आने वाले जनप्रतिनिधियों को हिन्दी के बारे में ठीक ठाक जानकारी होना तो दूर प़ढ़ने लिखने तक की फुर्सत नहीं है। नईदुनिया ने अपने सर्वे में राजस्थान के जिन सांसदों और विधायकों से बात की उनका प़ढ़ने के प्रति लगाव तकरीबन शून्य ही निकला। कुछ का तो यह तक कहना था कि अपनी राजनीतिक व्यस्तताओं के चलते उनको प़ढ़ने का समय ही नहीं मिल पाता है। भाजपा के विधायक बनवारी लाल सिंघल खुलकर कहते हैं कि अपने विधानसभा क्षेत्र के काम के लिए ही २४ घंटे कम प़ड़ते हैं,ऐसे में प़ढ़ने की फुर्सत कहां से निकालें।

कांग्रेस के एक सांसद का कहना था कि उन्होंने हिन्दी की अब तक केवल एक ही किताब प़ढ़ी है और वह है रामायण। आम जनता में भी हिन्दी के प्रति कोई खास जानकारी हो ऐसा भी नहीं है। ज्यादातर लोग देश के नामचीन हिन्दी लेखकों के बारे में कम ही जानकारी रखते हैं। वहीं कइयों की जानकारी बिल्कुल गलत है। एक जन का कहना था कि राजेंद्र यादव धर्मयुग के संपादक रहे हैं तो दूसरे ने निदा फाजली को हास्य लेखक बताया। इसी तरह एक ने श्रीलाल शुक्ल को प्रसिद्ध कवि बताया। लेखकों के बारे में लोगों की जानकारी केवल नाम से ही जानने तक सीमित ज्यादा नजर आई।

जहां तक लोगों के हिन्दी की विधाओं में रुचि की बात है लोगों का रुझान कविता और उपन्यासों के प्रति अधिक नजर आया, वहीं ज्यादातर लोग इस बात के पक्ष में लगे कि हिन्दी अखबारों में अंग्रेजी के शब्दों का प्रचलन सही नहीं है।हिन्दी दिवस या पखवा़ड़े को मनाए जाने को अधिकतर लोग सरकारी कर्मकांड ही मानते हैं और कहते हैं कि इससे हिन्दी का कोई भला नही हो सकता लेकिन इस सब के बीच अभी भी लोगों को उम्मीद की एक किरण हिन्दी में नजर आती है और वह यह है कि हिन्दी की हैसियत व्यावहारिक रूप में ब़ढ़ रही है। लोगों का कहना है कि हिन्दी की व्यापकता के बारण ही आज मजबूरी में चैनलों को हिन्दी में आना प़ड़ रहा है(कपिल भट्ट,नई दुनिया,दिल्ली,12.9.2010)।

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