क्या राज्यसभा में शिक्षा ट्रिब्यूनल विधेयक के विरोध का असल मकसद उससे संबंधित शिक्षा में कदाचार रोकने वाले विधेयक को ठंडे बस्ते में डालना था? कदाचार रोकने वाले इस विधेयक से शिक्षा के क्षेत्र में निजी संस्थानों को बहुत परेशानी है क्योंकि इसके तहत छात्रों को ठगने वालों को पहली बार हर्जाना देना होगा । जेल भी हो सकती है।
इस विधेयक से उन तमाम लोगों की दुकानों पर कड़ा पहरा लग सकता है जो डीम्ड विश्वविद्यालय या निजी शैक्षणिक संस्थानों के नाम पर कमाई कर रहे हैं। मानव संसाधन विकास मंत्रालय के कई वरिष्ठ अधिकारियों का मानना है कि जिस शिक्षा ट्रिब्यूनल विधेयक को लोकसभा ने इतनी खामोशी से पारित कर दिया उस पर राज्यसभा में इतना हंगामा होना समझ से परे है। उनका मानना है कि इस विधेयक को रोक कर असल निशाना कदाचार विधेयक को ठंडे बस्ते में डालना है। इस समय डीम्ड विश्वविद्यालयों पर सख्त कार्रवाई के लिए मंत्रालय के कदम से पहले से ही कई कांग्रेसी सांसद तथा सहयोगी पार्टियों के सांसद नाखुश चल रहे हैं। इस विधेयक को लेकर कांग्रेस के भीतर नाराजगी के सवाल पर मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा कि यह अकेले उनका विधेयक नहीं है। इसे मंत्रिमंडल ने पास किया है और कांग्रेस तथा बाकी दलों के समर्थन से ही यह लोकसभा में पारित हुआ। लिहाजा इसे सिर्फ उनका विधेयक कहना ठीक नहीं है और न ही यह कहा जा सकता है कि इसे हड़बड़ी में लाया गया है। गौरतलब है, शिक्षा ट्रिब्यूनल विधेयक और कदाचार रोधी विधेयक एक-दूसरे से जुड़े हैं। ऐसे में पहले एक का पारित होना जरूरी है। इसके बाद ही दूसरे का नंबर आएगा। इन दोनों ही विधेयकों को पहले मंत्री समूह और इसके बाद मंत्रिमंडल की मंजूरी मिल चुकी है। यानी सरकार के भीतर इस पर विस्तार पर चर्चा हो चुकी है(भाषा सिंह,नई दुनिया,दिल्ली,2.9.2010)।
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