17 साल पुराने वित्तीय अनियमितता के मामले में कोर्ट का राहत देने से इंकार
कोई अधिकारी वर्षों पूर्व के वित्तीय अनियममितता की जांच में देरी का बहाना बनाकर विभागीय कार्रवाई से बच नहीं सकता है। विभाग को जब भी अनियमितता के बारे में खबर लगेगी उसकी जांच कर दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई कर सक ती है। यह व्यवस्था देते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग (सीपीडब्लूडी) के एक अभियंता को 17 साल पुराने वित्तीय अनियमितता के मामले में राहत देने से इंकार कर दिया है। न्यायमूर्ति प्रदीप नंदराजोग व मूलचंद गर्ग की पीठ ने कहा कि सरकारी महकमों में उच्च पदों पर आसीन वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा वित्तीय अधिकार का दुरूपयोग समाज में कैंसर की तरह फैल रहा है, लिहाजा ऐसे मामले में शामिल लोगों को किसी भी तरह से राहत नहीं दी जानी चाहिए। केन्द्र सरकार की अपील को स्वीकार करते हुए केन्द्रीय प्रशानिक पंचाट के उस फैसले को रद्द कर दिया है जिसमें कई साल पहले की अनियमितता का हवाला देते हुए आरोपी अभियंता अनिल पुरी के खिलाफ विभागीय जांच पर रोक लगा दी गई थी। हाईकोर्ट ने कहा कि मामले में सीपीडब्लूडी के ही कार्यकारी अभियंता को जांच में दोषी पाए जाने पर पांच साल तक के लिए पंद्रह प्रतिशत उनका पेंशन काटने की सजा सुनाई गई है,ऐसे में आरोपी पुरी के खिलाफ भी विभागीय जांच होनी चाहिए। हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी करते हुए कहा कि मामले की जांच में पहले ही काफी देर हो चुकी है लिहाजा जांच अधिकारी पूरे मामले की तेजी से जांच कर अपनी रिपोर्ट विभाग को दे। दरअसल, सीपीडब्लूडी को वर्ष 1998 में इस बात की आरोपी अभियंता अनिल पुरी व कार्यकारी अभियंता ओपी नायर द्वारा सीजीओ कॉम्लेक्स में शीशे लगवाने के काम में अनियमितता बरते जाने की शिकायत मिली थी। विभाग के अनुसार 13 लाख से अधिक रुपये की हेराफेरी की गई। इस मामले में विभाग के कारण बताओं नोटिस जवाब देने में ही करीब दो साल लगा दिये। विभाग ने मंत्रालय व संघ लोक सेवा आयोग की राय के बाद आरोपी अभियंता अनिल पुरी को आरोप-पत्र थमा दिया। इस मामले में विभाग ने वर्ष 2006 में जांच अधिकारी नियुक्त कर जांच शुरू की थी। वर्ष 2006 में सेवानिवृत हो चुके अभियंता पुरी की दलील है कि आरोप करीब 17 साल पुराने हैं,लिहाजा विभागीय जांच पर रोक लगा दी जानी चाहिए(हिंदुस्तान,दिल्ली,3.9.2010)।
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