मेडिकल कालेज खोलने के लिए अनिवार्य नियमों में छूट देने की मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) की सिफारिश के आगे स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद भारी दबाव में है। माना जा रहा है कि ये सिफारिशें निजी मेडिकल कालेजों की ’लॉबी‘ के इशारे पर की गई है। यह लॉबी देश में शीर्ष पदों पर आसीन महिलाओं के पास इन सिफारिशों की एक प्रति भी भेजेगी। शायद यही वजह है कि एमसीआई ने अपनी सिफारिशों के साथ तर्क दिया है कि डॉक्टरों की कमी का सबसे ज्यादा खमियाजा महिलाओं को भुगतना पड़ रहा है।
हर साल साढ़े लाख गर्भवती महिलाओं की मौत हो रही है। एमसीआई ने देश में पांच सौ मेडिकल कालेज खोलने का जो फार्मूला पेश किया है उससे पहले स्वास्थ्य मंत्रालय में भी चर्चा की थी। तब कहा गया था कि इन सिफारिशों पर और विचार कर लिया जाए। क्योंकि इससे पहले एमसीआई की उस सिफारिश को सरकार ने सिरे से खारिज कर दिया था जिसमें मेडिकल कालेजों में दाखिले के लिए देशव्यापी संयुक्त परीक्षा के लिए कहा गया है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम करुणानिधी ने इसका विरोध करते हुए प्रधानमंत्री को पत्र लिख दिया था। गत सप्ताह एमसीआई ने पांच सौ मेडिकल कालेज खोलने का फामरूला तैयार कर उसे सार्वजनिक करने के लिए प्रेस-वार्ता बुलाई थी। ऐन मौके पर उसे यह कह कर रोक दिया गया कि ऐसा न हो कि इन सिफारिशों का हाल भी पहले जैसा हो जाए इसलिए इन सिफारिशों पर और विचार कर लिया जाए। मगर एमसीआई बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के अध्यक्ष डा. एसके सरीन ने अपनी सिफारिशों के साथ महिला स्वास्थ्य का दांव फेंका है।
माना जा रहा है इन सिफारिशों के पीछे काम करने वाली ’लॉबी‘ राष्ट्रपति प्रतिभा देवी पाटिल, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार, विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज, मुख्यमंत्री शीला दीक्षित जैसी शीर्ष पदों पर आसीन महिलाओं से दबाव डलवाएगी। इन सिफारिशों के साथ एमसीआई ने कहा है कि देश में करीब 28 लाख शिशु हर साल जन्म लेते है मगर डाक्टरों की कमी के चलते हर साल साढ़े चार लाख गर्भवती महिलाओं की मौत हो जाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के आधार पर प्रति एक हजार की आबादी पर एक डाक्टर होना चाहिए। इस समय देश में साढ़े सात लाख डाक्टरों की कमी है। जबकि इस समय चल रहे मेडिकल कालेजों से हर साल करीब 30 हजार डाक्टर निकल रहे है। यही वजह है कि सिफारिशों पर ’वजन‘ देने के लिए महिला शक्ति का दांव फेंका गया है। अब देखना यह है कि आजाद क्या फैसला करते है क्योंकि इस बार एमसीआई की सिफारिशों को ठंडे बस्ते में डाल पाना जरा मुश्किल होगा(ज्ञानेंद्र सिंह,राष्ट्रीय सहारा,दिल्ली,20.9.2010)।
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