निर्यात कर रिफंड की दरों में जबरदस्त कटौती से चिंतित निर्यातकों ने कहा कि इस पहल से परिधान, चमड़ा, हस्तशिल्प एवं धातु जैसे क्षेत्रों में रोजगार पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। फेडरेशन आफ इंडियन एक्सपोर्ट आर्गनाइजेशन (फियो) के अध्यक्ष ए. शक्तिवेल ने कहा, ’परिधान, धातु हस्तशिल्प, कालीन, कुछ अभियांत्रिकी उत्पादों के लिए ड्यूटी ड्राबैक में कटौती किए जाने से निश्चित तौर पर रोजगार पर गंभीर असर पड़ेगा।‘ शनिवार को केन्द्र उत्पाद एवं सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीईसी) ने विभिन्न वस्तुओं के लिए कच्चे माल के आयात शुल्क के रिफंड की दरों में 30 प्रतिशत तक की कटौती कर दी। नई दरें सोमवार से प्रभावी हो जाएंगी। यद्यपि चालू वित्त वर्ष में अप्रैल से अगस्त के बीच देश का निर्यात 28.6 प्रतिशत तक बढ़ा है, लेकिन कपड़ा, हस्तशिल्प, हथकरघा एवं कालीन जैसे कुछ खंडों के अब भी आर्थिक संकट के असर से उबरना बाकी है। अमेरिका और यूरोप जैसे प्रमुख बाजारों में मांग में सुधार की गति मंद रहने के चलते इन श्रमोन्मुखी क्षेत्रों से निर्यात बुरी तरह प्रभावित हुआ है। जहां कपास के वस्त्रों के लिए ड्यूटी ड्राबैक की दर 8.8 प्रतिशत से घटाकर 7.5 प्रतिशत कर दी गई, वहीं कपास एवं कृत्रिम धागे से बने वस्त्र के लिए दर 9.8 प्रतिशत से घटाकर 8.6 प्रतिशत कर दी गई। वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी को लिखे एक पत्र में निर्यात संवर्धन परिषद के चेयरमैन प्रेमल उडाणी ने कहा, ’सिले-सिलाए वस्त्र के लिए मंदी का दौर अब भी कायम है। उद्योग कच्चे माल, की बढ़ती कीमत से जूझ रहा है। ऐसे में निर्यात साधनों में कमी से नौकरियां घटेंगी।‘ चमड़ा एवं चमड़े से बनी चीजों के लिए ड्यूट ड्राबैक 5 से 15 प्रतिशत तक, साइकिल एवं खेल के सामानों के लिए 9 से 20 प्रतिशत और लौह एवं इस्पात की वस्तुओं के लिए 25 से 30 प्रतिशत तक घटाया गया है। शक्तिवेल ने कहा कि सरकार को निर्यात कर रिफंड की दरों को तर्कसंगत बनाने के लिए अपने निर्णय पर फिर से विचार किया जाना चाहिए ताकि निर्यातकों के हितों की रक्षा हो सके(राष्ट्रीय सहारा,दिल्ली,20.9.2010)।
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