इंजीनियरिंग कॉलेजों की सीटों में भर्ती के लिए दूसरे चरण की काउंसिलिंग के बाद भी 5600 सीटें खाली रह गईं, जिसे भरने में प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेजों का पसीना छूट गया है।तकनीकी शिक्षा संचालनालय ने काउंसिलिंग के बाद खाली रह गई सीटों को भरने का अधिकार शासकीय नियमों के तहत प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेजों को दे दिया है। छात्रों को रिझाने के लिए कॉलेजों की ओर से कई तरह के प्रयास किए जा रहे हैं।
कुछ कॉलेजों में जहां एडमिशन लेने के साथ ही लैपटॉप फ्री दिया जा रहा है, तो अधिकतर कॉलेजों में फीस में छूट देते हुए किश्तों में राशि जमा करने की सहूलियत दी जा रही है। कॉलेजों की ओर से रोज छात्रों व पालकों के मोबाइलों पर प्रवेश के लिए आकर्षक प्रलोभन दिए जा रहे हैं। इसके बाद भी छात्रों का रुझान एडमिशन लेने में नहीं है। ऐसा इसी साल नहीं बल्कि चार साल से है।
छात्रों को सूचना दी जा रही है कि वे सभी छात्र बीई की सीटों में प्रवेश ले सकते हैं, जो 12वीं पास होने के साथ पीईटी या एआईईईई में शामिल हुए हों। यानी नंबरों की बंदिश नहीं है। छात्र को जीरो नंबर मिले हों या उससे ज्यादा यह मायने नहीं रखता। प्रवेश के समय महत्वपूर्ण यह हो गया है कि छात्र किस कोटे से एडमिशन ले रहा है।
बीई का गिरता स्तर : राज्य बनने के समय यहां एक दर्जन से भी कम इंजीनियरिंग कॉलेज थे। वर्तमान में प्रदेश में 50 इंजीनियरिंग कॉलेजों के पास 16 हजार से ज्यादा सीटें हैं। बड़ी संख्या में कॉलेज खुलने की वजह से ही इंजीनियरिंग की पढ़ाई का स्तर लगातार गिर रहा है।
वर्तमान समय में तृतीय श्रेणी में भी 12वीं पास करने वाले छात्र को इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश मिल रहा है। इसके ठीक विपरीत बीएससी में प्रवेश के लिए छात्रों को जरूरत से ज्यादा नंबर लाने पड़ रहे हैं। नए सत्र में उन छात्रों को बीएससी के लिए साइंस कॉलेज समेत अन्य महाविद्यालयों में प्रवेश मिला, जिनका 12वीं में 70 प्रतिशत से ज्यादा अंक है। छात्रों को बीई से ज्यादा बेहतर विकल्प बीएएसी में दिखा रहा है(दैनिक भास्कर,रायपुर,5.9.2010)।
ढूंढे नहीं मिल रही है इंजिनियरों को नौकरियाँ।
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