प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय की पुनस्र्थापना संबंधी विधेयक के संसद से पास हो जाने के बाद अब पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय की खोज की प्रासंगिकता बढ़ गयी है । भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, बिहार पुरातत्व निदेशालय, काशी प्रसाद जायसवाल शोध संस्थान, भारतीय संस्कृति निधि (इंटैक )जैसी संस्थाओं के सामने पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय की खोज चुनौती है । प्राचीन काल से ही पाटलिपुत्र विद्या का विश्व में प्रमुख केन्द्र रहा है और यहां वर्ष, उप-वर्ष, पाणिनि, पिंगल, पतंजलि, वररुचि जैसे विद्वानों का यहां के विद्वानों के समक्ष परीक्षा होती थी और जब वे यहां की परीक्षा में पास होते थे तभी वे विश्व में मान्य होते थे। ऐसी थी पाटलिपुत्र की विद्वत परिषद्। यहां की शैक्षणिक व्यवस्था प्राचीन काल से गुप्त काल तक अनवरत रूप से चलती रही जब तक कि नालंदा में दूसरा विश्वविद्यालय स्थापित न हो गया। पाटलिपुत्र में विश्व के पहले विश्वविद्यालय का सबसे बड़ा प्रमाण फाहियान है क्योंकि जिस काल में वह भारत आया उस समय नांलदा विश्वविद्यालय का अस्तित्व था ही नहीं। फाहियान को संस्कृत सीखने और विनय पिटक के संकलन के लिए पाटलिपुत्र में (411 ई. से 414 ई.) रहना पड़ा जबकि ह्लेनसांग को नालंदा में रहना पड़ा था। विद्वानों के परितोष के लिए 84 शास्त्रार्थगृह (वादशाला) बने हुए थे। आर्यरक्षित ने 14 विद्याएं पाटलिपुत्र में ही अधिगत की थी। इस संबंध में काशी प्रसाद जायसवाल शोध संस्थान के पूर्व निदेशक जगदीश्वर पांडेय का कहना है कि प्राचीन पाटलिपुत्र में वर्ष, उप-वर्ष, पाणिनि, पिंगल, पतंजलि, वररुचि जैसे विद्वानों की परीक्षा हुई थी तो इससे स्पष्ट हो जाता है कि यहां कोई न कोई विश्वविद्यालय अवश्य था। उन्होंने कहा कि राजशेखर ने काव्यमीमांसा में लिखा है कि पाटलिपुत्र में एक विद्वत परिषद् थी जो लेखकों की रचनाओं की श्रेष्ठता की परीक्षण करके उसे मान्यता प्रदान करती थी। नालंदा विश्वविद्यालय स्थापित (413 ईस्वी) होने से पाटलिपुत्र की शैक्षणिक गतिविधि प्रभावित हुईं । श्री जगदीश्वर पांडेय का कहना है कि पाटलिपुत्र स्थित प्राचीन विश्वविद्यालय की खोज होनी चाहिए। इसके लिए आधुनिक तक नीकों को सहारा लिया जा सकता है। पुराविद अरविन्द महाजन कहते हैं कि प्राचीन पाटलिपुत्र में शैक्षणिक व्यवस्था काफी उच्च स्तर की थी। इसमें कोई संदेह नहीं है लेकिन यहां कोई विश्वविद्यालय था या नहीं, इसका अब तक कोई प्रमाण नहीं मिला है । पाटलिपुत्र में दो विहार होने के स्पष्ट प्रमाण मिलते हैं । श्री महाजन का कहना है कि इसके लिए इतिहासकारों और पुराविदों को साझा प्रयास करना होगा(सुबोध कुमार नंदन,हिंदुस्तान,पटना,5.9.2010)।
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