मेडिकल, इंजीनियरिंग व उच्च शिक्षा से सम्बंधित शिक्षण संस्थाओं ने अब अगर अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के गरीब छात्रों से फीस वसूली तो उनके संचालकों को जेल की हवा खानी पड़ेगी। शासन स्तर पर मिलने वाली शिकायतों के मद्देनजर बुधवार को उक्त आशय का फैसला किया गया। इसके अलावा सामान्य गरीब, पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक वर्ग के छात्रों के शुल्क प्रतिपूर्ति को लेकर होने वाली गड़बडि़यां रोकने के लिए शासन ने उसकी प्रक्रिया बदल दी है। इन वर्गो के छात्रों की शुल्क प्रतिपूर्ति की राशि अब सम्बंधित शिक्षण संस्थाओं के बजाय छात्रों के व्यक्तिगत खातों में जमा की जाएगी। इस मसले पर एक-दो दिन के भीतर समाज कल्याण विभाग के शासनादेश जारी करने की संभावना है। सूत्रों के अनुसार अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के गरीब छात्रों की फीस प्रतिपूर्ति के नियमों को लेकर एक तरफ जहां शिक्षण संस्थाओं के प्रति सरकार का रवैया और सख्त हुआ है वहीं सरकार के स्तर से जारी होने वाली राशि शिक्षण संस्थाओं के खाते में जल्दी पहुंचे, इसे लेकर उन्हें राहत भी दी गयी है। अभी तक शुल्क प्रतिपूर्ति की राशि के लिए संस्थाओं को महीनों इंतजार करना पड़ता था। शासन का प्रयास है सम्बंधित शिक्षण संस्थाओं को एक माह के भीतर शुल्क प्रतिपूर्ति की राशि प्राप्त हो जाए। उल्लेखनीय है एक लाख रुपये से कम सालाना आय वाले विभिन्न वर्गो के छात्रों की उच्च शिक्षा के लिए शासन से शुल्क प्रतिपूर्ति की अदायगी की जाती है। इसके तहत सामान्य वर्ग, पिछड़ा वर्ग तथा अल्पसंख्यक वर्ग के छात्रों को शासकीय शिक्षण संस्थाओं में निर्धारित शुल्क के बराबर शुल्क की प्रतिपूर्ति की जाती है जबकि अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के छात्रों को पूर्ण शुल्क प्रतिपूर्ति का प्रावधान है। इन छात्रों की फीस प्रतिपूर्ति के रूप में शिक्षण संस्थाओं को सरकार करीब छह अरब रुपये का भुगतान करती है(प्रेम सिंह,दैनिक जागरण,लखनऊ,9.9.2010)।
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