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15 सितंबर 2010

झारखंडःपरीक्षा समन्वयक खुद बने परीक्षक

झारखंड लोक सेवा आयोग द्वितीय सिविल सेवा परीक्षा में अनियमितताओं की जांच के क्रम में लगातार चौंकानेवाले तथ्य सामने आ रहे हैं। पहले ही उत्तरपुस्तिकाओं मे ओवरराइटिंग और काट छांट कर अंक बढ़ाने का मामला सामने आ चुका है।

कॉपियां फोरेंसिक जांच के लिए भेजी जा चुकी हैं। अब अनुसंधान के क्रम में इस बात की भी जानकारी मिली है कि वाराणसी के जिस प्रो परमानंद सिंह को द्वितीय सिविल सेवा परीक्षा की उत्तरपुस्तिकाओं की जांच के लिए समन्वयक बनाया गया था, वह खुद भी परीक्षक बन बैठे।

इतना ही नहीं उन्होंने जेपीएससी से समन्वयक के रूप मे कार्य करने के लिए अलग व परीक्षक के रूप में कार्य करने के लिए अलग राशि भी ली। जांच के क्रम मे इसका खुलासा हुआ है। बताते चलें कि जेपीएससी द्वितीय सिविल सेवा की परीक्षा की कॉपियों की जांच के लिए आयोग ने वाराणसी के प्रोफेसर परमानंद सिंह से संपर्क किया और उनकी सहमति के बाद उन्हें समन्वयक की जिम्मेदारी सौंपी गई।

प्रोफेसर साहब को इसके लिए अलग से राशि दी गई। लेकिन उन्होंने उस परीक्षा की जांच के लिए अन्य लोगों के साथ खुद को परीक्षक भी नियुक्त कर लिया। उनकी देखरेख में ही सारी कॉपियों जांची गई। आयोग की अन्य परीक्षाओं की जांच के लिए भी उन्हें समन्वयक बनाया गया था।

उन्हें जेपीएससी द्वारा आयोजित सहकारिता प्रतियोगिता परीक्षा की कॉपियों की जांच की भी जिम्मेदारी सौंपी गई थी। परमानंद सिंह से द्वितीय सिविल सेवा की परीक्षा की उत्तरपुस्तिओं में ओवरराइटिंग और नंबर बढ़ाने के मामले में एक बार निगरानी ब्यूरो पूछताछ कर चुका है, — लेकिन अब वे निगरानी ब्यूरो के बुलावे पर नहीं आ रहे हैं।

कॉपियों की जांच में हुआ खुलासा

>वाराणसी के प्रो परमानंद सिंह को उत्तरपुस्तिकाओं की जांच के लिए समन्वयक बनाया गया था, वह खुद परीक्षक बन बैठे।
>परमानंद ने समन्वयक के रूप में कार्य करने के लिए अलग व परीक्षक के रूप में कार्य करने के लिए अलग राशि ली।
>पहले ही उत्तरपुस्तिकाओं में ओवरराइटिंग और काट-छांट कर अंक बढ़ाने का मामला सामने आ चुका है(दैनिक भास्कर,रांची,15.9.2010)।

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