जरूरतभर के स्कूलों, शिक्षकों, क्लासरूम और गुणवत्तापूर्ण पढ़ाई की कमी से जूझ रही सरकार सिर्फ 2500 मॉडल स्कूलों के लिए ही सार्वजनिक व निजी भागीदारी (पीपीपी) मॉडल सीमित नहीं रखेगी। उसे पीपीपी का रास्ता अब कुछ ज्यादा ही अच्छा लगने लगा है। यही वजह है कि वह इस मॉडल को ज्यादा से ज्यादा अपनाने के लिए राज्यों पर भी दबाव बनाने में जुट गई है। हालांकि पीपीपी मॉडल की तरफ सरकार के बढ़ते झुकाव को देखते हुए शिक्षा में बड़े पैमाने पर निजीकरण की तरफ ले जाने को लेकर सवाल उठने लगे हैं। फिर भी सरकार का तर्क है कि जब राष्ट्रीय राजमार्ग, एयरपोर्ट और बिजली के क्षेत्र में पीपीपी मॉडल कामयाब साबित हो रहा है और रेलवे जैसे महकमा इस ओर निहार रहा है तो फिर स्कूली पढ़ाई के क्षेत्र में उसका बेहतर उपयोग क्यों नहीं किया जा सकता। सूत्रों के मुताबिक इन्हीं तर्कों के सहारे योजना आयोग अब राज्यों को स्कूली शिक्षा में पीपीपी मॉडल को अधिक से अधिक तरजीह देने के लिए दबाव बनाने की कोशिश में है। बताते हैं कि माध्यमिक शिक्षा में तो पीपीपी के इस एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए योजना आयोग बीते महीने राज्य के माध्यमिक शिक्षा सचिवों को समझाने की भरपूर कोशिश कर चुका है। आयोग का कहना है कि इस कदम को पूरे स्कूली शिक्षा में सुधार के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। अलबत्ता इसे स्कूली शिक्षा में सुधार के क्रम में उत्कृष्ट केंद्र (सेंटर फॉर एक्सिलेंस) के रूप में एक पहल की तरह लिया जाना चाहिए। एक तर्क यह भी है कि पीपीपी मॉडल में स्कूलों के लिए जमीन का इंतजाम निजी क्षेत्र को ही करना होगा, जबकि राज्य सरकार उसे प्रचलित दर पर उसकी खरीद या किराए पर दिलाने में मदद कर सकती है। जबकि स्कूल बनाने का खर्च निजी क्षेत्र को उठाना होगा। ऐसे एक स्कूल में मोटे तौर पर अधिकतम ढाई हजार छात्रों का ही दाखिला हो सकता है, जबकि एक हजार चयनित बच्चों का खर्च सरकार उठा सकती है। उन बच्चों में भी 50 प्रतिशत अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़े वर्ग और गरीबी रेखा के नीचे के परिवारों के हो सकते हैं। जबकि बाकी बच्चे आयकर के दायरे में न आने वाले परिवारों से हो सकते हैं। सूत्रों की मानें तो राज्यों ने योजना आयोग के इस प्रस्ताव पर अभी अपनी मुहर नहीं लगाई है। माना जा रहा है कि पीपीपी मॉडल के इन स्कूलों के बनने से ज्यादा फायदा निजी क्षेत्र को ही होगा। जमीन दिलाने से लेकर छात्रों के एक हिस्से का खर्च उठाने तक में सरकार शामिल होगी, जबकि आधे से अधिक बच्चे तो निजी क्षेत्र के प्रबंधन के अधीन होंगे। हालांकि योजना आयोग की नजर में इन स्कूलों को छात्रों के दाखिले व उनसे फीस वसूलने के मामले में निजी क्षेत्र के दूसरे स्कूलों जैसी छूट नहीं होगी(राजकेश्वर सिंह,दैनिक जागरण,दिल्ली,19.9.2010)।
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