उत्तराखंड में इंजीनियरिंग समेत तमाम पारंपरिक कोर्सेज के प्रति युवाओं का रुझान घटता जा रहा है। बीते दो वर्षो से बीटेक और एमबीए की सीटें भरना मुश्किल हो गया है। वर्ष 2009-10 में बीटेक में करीब 25 प्रतिशत और व्यवसायिक कोर्सेज में करीब 30 प्रतिशत सीटें खाली रह गई थीं। वर्तमान सत्र में स्थिति और बिगड़ गई। इस बार बीटेक की लगभग 40 व अन्य कोर्सेज की 50 प्रतिशत सीटें खाली रह गई थीं। हालांकि बाद में विश्वविद्यालय ने ओपेन एडमिशन समेत तमाम हथकंडे अपनाए तो कुछ सीटें भरी जा सकीं। मालूम हो कि राज्य में तकनीकी विवि व केंद्रीय विवि समेत अन्य विश्वविद्यालयों से करीब 250 संस्थान संबद्ध हैं। इनमें अधिकांश तकनीकी व व्यवसायिक कोर्स संचालित करते हैं। निजी संस्थानों की हालत सबसे ज्यादा खराब है। अगर अगले वर्ष भी ऐसी ही स्थिति रही तो संस्थानों को खर्च निकालना तक मुश्किल हो जाएगा। ऐसे में संस्थान लगातार विवि पर नए कोर्सेज शुरू करने का दबाव बना रहे हैं। शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों का भी मानना है कि तकनीकी शिक्षा के लिए धड़ाधड़ खुले संस्थानों की वजह से ऐसी स्थिति हुई है। राज्य में छात्रों की संख्या के सापेक्ष संस्थानों में सीटें बेहद ज्यादा हैं और विवि बाहर के छात्रों को आकर्षित करने मे असफल रहे हैं। उनका मानना है कि वक्त के साथ शिक्षण सुविधाओं में वृद्धि के साथ ही नए कोर्सेज शुरू किए जाने चाहिए। साथ ही सत्र समय से शुरू किया जाए ताकि राज्य से बाहर के ज्यादा से ज्यादा छात्रों को लाया जा सके(दैनिक जागरण,राष्ट्रीय संस्करण,19.9.2010)।
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