मुंबई महानगर पालिका पर कब्जा जमाए बैठी शिवसेना हिंदी को स्वीकार्यता देने में कंजूसी दिखाती रहती है। लेकिन अंग्रेजी उसकी छाती पर मूंग दलते हुए मराठी और हिंदी दोनों को पछाड़कर आगे बढ़ती जा रही है। यह तथ्य मनपा स्कूलों एवं उनमें पढ़ रहे छात्रों के हाल ही में सामने आए आंकड़ों को देखकर पता चलता है। कुछ ही दिन पहले मुंबई मनपा के सदन में एक प्रस्ताव पारित किया था कि जो मनपा कर्मचारी मराठी भाषा में स्नातकोत्तर डिग्री हासिल करेंगे, उन्हें विशेष वेतन बढ़ोतरी का लाभ दिया जाएगा। सदन के इस प्रस्ताव जब मनपा के विरोधीदल नेता राजहंस सिंह ने इसी प्रकार का लाभ हिंदी सहित अन्य भाषाओं में स्नातकोत्तर करने वालों को देने का सुझाव रखा तो सदन को सांप सूंघ गया था। मराठी एवंअन्य भारतीय भाषाओं के बीच इस प्रकार का भेदभावपूर्ण रुख रखने वाली मुंबई मनपा द्वारा आठ भाषाओं में कुल 1188 विद्यालय संचालित किए जाते हैं। ये भाषाएं हैं- मराठी, हिंदी, उर्दू, तमिल, गुजराती, तेलुगू, कन्नड और अंग्रेजी। प्राथमिक कक्षाओं से बारहवीं कक्षा तक इन सभी माध्यमों के विद्यालयों में कुल 4,37,000 विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करते हैं। पिछले पांच वर्ष में इन आठों भाषाओं में से सिर्फ अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों में छात्रों की संख्या बढ़ी है, बाकी सातों भाषाओं में कम होती जा रही है । सूचना अधिकार कार्यकर्ता अनिल गलगली द्वारा मनपा से पूछे गए एक सवाल के जवाब में जो तथ्य सामने आए हैं, उसके अनुसार 2004-05 से 2008-09 के बीच मुंबई में चल रहे मराठी माध्यम के स्कूलों की संख्या 450 से घटकर 428 रह गई है और मराठी माध्यम के विद्यार्थियों की संख्या में 55,950 की कमी दर्ज की गई है। इस अवधि में हिंदी माध्यम के स्कूलों की संख्या में तो एक का इजाफा हुआ है, लेकिन विद्यार्थियों की संख्या में 16,444 की कमी दर्ज की गई है। लेकिन इसी अवधि में अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों की संख्या न सिर्फ 46 से बढ़कर 49 हो गई है, बल्कि इसके विद्यार्थियों की संख्या में 4,752 का इजाफा हुआ है। अंग्रेजी के अलावा उर्दू ही एक ऐसा माध्यम है, जिसमें मनपा ने स्कूलों की संख्या तो उपरोक्त अवधि में बढ़ाकर 203 से 206 कर दी है। लेकिन विद्यार्थियों की संख्या यहां भी 5,119 कम हो गई है(दैनिक जागरण, राष्ट्रीय संस्करण,14.9.2010 में मुंबई से ओम प्रकाश तिवारी की रिपोर्ट) ।
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