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03 सितंबर 2010

रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालयःरिजल्ट में देरी से मेडिको में रोष

एमबीबीएस फाइनल परीक्षा के नतीजे अप्रैल के पहले सप्ताह में घोषित किए गए थे। इसमें कई छात्रों ने जिन्हें पूरक या पेपर में नंबर कम मिले थे उन्होंने पुनर्मूल्यांकन के लिए पं. रविशंकर शुक्ल विवि में अर्जी दी थी।

पांच माह बीत जाने के बाद भी नतीजे नहीं आए हैं। इससे मेडिकल छात्रों में काफी रोष है। इसकी शिकायत छात्रों ने रविवि के कुलसचिव केके चंद्राकर से भी की, लेकिन उनसे उचित आश्वासन नहीं मिलने की वजह से छात्र शुक्रवार को कुलपति से मिलकर नतीजे घोषित करने की मांग करेंगे।

डिग्री मिलने में लग जाएंगे छह माह और : एमबीबीएस फाइनल के स्टूडेंट पुष्पेंद्र वैष्णव, सुधांशु सिंगरौला और मनप्रीत कौर ने बताया कि साढ़े चार साल में एमबीबीएस की पढ़ाई होती है। एक साल के इंर्टनरशिप के बाद ही उन्हें एमबीबीएस की डिग्री मिलती है। फाइनल के नतीजे आने में ही पांच महीने की देर हो गई है। ऐसे में एक साल का इंटर्नशिप पहले ही पांच महीने लेट हो गया है।

नतीजे आने के बाद इंटर्नशिप की शुरुआत होगी। इससे फाइनल के स्टूडेंट को जो डिग्री साढ़े पांच साल में मिलनी चाहिए वो छह साल में मिल जाएगी। इससे प्रीपीजी की तैयारी में भी कई तरह की अड़चनें आएंगी। रविवि इस प्रकरण को गंभीरता से नहीं ले रहा है। इससे छात्रों का भविष्य अंधकार में है।

कुलपति ने नहीं माना तो प्रदर्शन: प्रोफेशनल स्टूडेंट आर्गेनाइजेशन के अध्यक्ष विवेक शर्मा ने बताया कि नतीजे घोषित करने की मांग को लेकर शुक्रवार को कुलपति से मुलाकात की जाएगी। दो से तीन दिन के भीतर नतीजे घोषित नहीं किए गए तो कॉलेज के छात्र कुलपति कार्यालय के बाहर धरना-प्रदर्शन करेंगे। प्रतियोगिता के इस दौर में छात्रों का एक-एक दिन कीमती है। ऐसे में छह माह की देरी बर्दाश्त नहीं की जाएगी।

लगातार खराब हो रहे नतीजे. रायपुर मेडिकल कॉलेज के फस्र्ट इयर के नतीजे इस वर्ष चौंकाने वाले आए हैं। 2009-10 के 150 छात्रों में 40 से ज्यादा छात्रों को पूरक की पात्रता दी गई है। इससे कॉलेज के प्रोफेसर भी चिंतित है।

लगातार खराब नतीजों की वजह से रायपुर मेडिकल कॉलेज को अतिरिक्त 50 सीटों की मान्यता के लिए कई तरह के पापड़ बेलने पड़े थे। जानकारों का कहना है कि कॉलेज में प्रोफेसरों की कमी की वजह से छात्रों के नतीजे खराब हो रहे हैं। समय पर सिलेबस कंप्लीट न होने की वजह से ही छात्र परीक्षा में पिछड़ जाते हैं(दैनिक भास्कर,रायपुर,3.9.2010)।

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