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09 सितंबर 2010

पंजाबःक्या यही है शिक्षा क्रांति?

ऐसा सोचा नहीं गया था कि चिंतन में प्रगतिशीलता की दृष्टि से नंबर एक माना जाने वाला पंजाब जब पांच सितंबर को अध्यापक दिवस मनाएगा तो उसे काले दिवस के रूप में मनाएगा। इस दिन तरनतारन में मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल खड़ूर साहिब, गोइंदवाल और चोला साहिब में विकास कार्यो का उद्घाटन करने गए तो उन्हें प्राथमिक प्रशिक्षित अध्यापकों के असंतोष और प्रदर्शन का सामना करना पड़ा। उनके नेताओं की गिरफ्तारी मुख्यमंत्री के आगमन से पूर्व ही कर ली गईं। पंजाब पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के जमाने से अपने आपको शिक्षा क्रांति का अग्रदूत मानता रहा है। वह सर्वशिक्षा अभियान का ध्वजवाहक है। इस क्रांति की आधारभूमि प्राथमिक प्रशिक्षित अध्यापकों के योगदान पर खड़ी है। नवसाक्षरता अभियान भी इनके सहयोग की अपेक्षा करता है। सन् 2003 से पंजाब में शिक्षा क्रांति के नाम पर धड़ाधड़ बीएड कालेज खुले। प्रशिक्षित अध्यापकों की बाढ़ आ गई। राज्य में पहले इनकी संख्या पैंतीस थी, देखते ही देखते एक सौ दस हो गई। अधिक कालेज निजी क्षेत्र में खुले थे। ये प्रशिक्षण की दुकानें बन गए। इनमें मूलभूत आवश्यक सुविधाओं का अभाव था। लेकिन इनमें से प्रशिक्षित स्नातकों की संख्या बढ़ती ही चली गई। इस समय एक अनुमान के अनुसार प्रदेश में एक लाख प्रशिक्षित अध्यापक हैं, जो बरसों से अमरिंदर और फिर बादल सरकार से रोजगार मांगते पुलिस की लाठियां खा रहे हैं, या जेल काट रहे हैं। अभी तक इनकी स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आया है। इसीलिए इन्होंने इस बरस अध्यापक दिवस को काले दिवस के रूप में मनाया है। इधर ईटीटी अध्यापकों का आंदोलन दो मुद्दों पर है। एक उन्हें नियमित रोजगार दिया जाए और दूसरा उनके प्रशिक्षण के लिए प्रवेश परीक्षा की शर्त को हटा दिया जाए। बादल सरकार बेरोजगार अध्यापकों को रोजगार देने का वचन देकर सत्ता में आई थी। साढ़े तीन बरस की अवधि में अध्यापक पानी की टंकियों पर चढ़कर आत्मदाह कर अपना रोष प्रदर्शन करते रहे लेकिन सिवा ऐसे रोष प्रदर्शन पर प्रतिबंध के उनकी समस्या का कोई समाधान नहीं निकला। हां, इनके नेताओं के साथ बातचीत और समस्या के समाधान के आश्वासनों की कोई कमी नहीं है। परन्तु यह समाधान कभी फलीभूत नहीं हुए, इसीलिए इस अध्यापक दिवस को काला दिवस मनाने के लिए तरनतारन में अध्यापक संगठन निकले और गिरफ्तार हुए। लेकिन समस्या केवल बेकार अध्यापकों को रोजगार देने अथवा उन्हें उचित प्रशिक्षण के अवसर प्रदान करने की ही नहीं है। चाहे अपने आश्वासनों की राजनीति के तहत पंजाब सरकार ने इस अध्यापक दिवस पर सोलह हजार ठेका कर्मचारियों को नियमित करने का वचन दे दिया है लेकिन इन्हें कब नियमित किया जाएगा, कैसे किया जाएगा? यह स्पष्ट नहीं है। सरकार ने पिछले बरसों में ग्रामीण शिक्षा और ग्रामीण चिकित्सा देने के लिए जिला परिषदों के अधीन शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में शिक्षा के लिए चौदह हजार और चिकित्सा के क्षेत्र में चौदह सौ सेवा प्रदाता रखे थे। ये लोग एक लंबे समय से अपनी सेवाओं को नियमित करने के लिए आंदोलन कर रहे हैं। क्योंकि इनके ठेका वेतनमान और नियमित वेतनमान में बहुत अंतर है। सरकार ने इस शिक्षक दिवस पर उन्हें नियमित करने की मांग मान ली। लेकिन यह कैसे होगा, बजट का प्रावधान क्या होगा? स्थिति स्पष्ट नहीं है। अध्यापकों के बारे में घोषणा की गई है, डाक्टरों के बारे में स्पष्ट नहीं है। फिर साफ कहें तो इस समय सरकार का प्रशासन तंत्र ही ठेका रोजगार पर चल रहा है। जो कर्मचारी रिटायर होता है, उसके स्थान पर ठेका कर्मचारी या अस्थायी कर्मचारी ही रखा जाता है। इस अध्यापक दिवस पर सोलह हजार कर्मचारियों को नियमित करने की घोषणा करके क्या पंजाब सरकार ने एक पिन्डौरा संदूक नहीं खोल लिया है? अब हर ठेका और अस्थायी कर्मचारी अपने आपको नियमित करने की मांग करेगा। लेकिन सरकार के पास आर्थिक संसाधन कहां हैं? अभी डेढ़ साल बाद होने वाले विधानसभा चुनावों की आहट के कारण बादल पिता-पुत्र द्वारा नए प्रोजेक्टों के उद्घाटनों की झड़ी लगाई जा रही है। अब इस कर्मचारी नियमित करने की घोषणा को भी क्या इसी खोखले उपक्रम की कड़ी नहीं माना जाएगा? अध्यापक दिवस बीत गया। लेकिन राज्य में शिक्षा क्रांति के मील पत्थर हमें कहीं नजर नहीं आते। अधिक से अधिक यहां शिक्षा क्रांति को निजीकरण की चेरी बनाया जा रहा है जहां उद्यमियों की लाभ भावना सेवा भावना पर हावी है। यहां सरकारी स्कूलों में अध्यापकों की असामियां खाली पड़ी हैं। वरिष्ठ छात्र कनिष्ठ छात्रों को पढ़ाते देखे जा रहे हैं। मध्य दिवस भोजन योजना भ्रष्टाचार और अकर्मण्यता की शिकार हो रही है। बच्चे को अपने भोजन से स्वस्थ करने के स्थान पर बीमार कर रही है। कहां गईं आदर्श स्कूल और पढ़ो पंजाब योजनाएं? अपनी दृष्टिहीनता और सहयोग के अभाव में बीच रास्ते दम तोड़ गईं? अब बाकी है शिक्षा क्रांति का जयनाद और अध्यापकों की कोरी वंदना(सुरेश सेठ,दैनिक जागरण,जालंधर संस्करण,8.9.2010)।

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