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11 सितंबर 2010

लौटने लगे विदेशों में पढ़ा रहे भारतीय गुरु

देश के शीर्ष तकनीकी शिक्षा संस्थानों में शिक्षकों की कमी को पूरा करने का रास्ता सहज हो गया है। पीएचडी करके विदेश के विभिन्न विश्र्वविद्यालयों में पढ़ा रहे बड़ी संख्या में शिक्षक भारत लौट रहे हैं। उनमें से कुछ ने विभिन्न संस्थानों में कार्यभार ग्रहण भी कर लिया है। अकेले आईआईटी कानपुर से ही ऐसे लगभग तीन दर्जन शिक्षक जुड़े हैं। नये खुले आईआईटी में तो पहले से ही शिक्षकों की कमी है उस पर पहले से चल रहे आईआईटी में सीटें बढ़ने से शिक्षकों की कमी और बढ़ गई। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए कुछ दिनों पहले मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल की अगुवाई में आईआईटी निदेशक प्रो. संजय गोविंद धांडे व दूसरे सदस्यों ने अमेरिका सहित दूसरे देशों का दौरा कर वहां पीएचडी कर रहे या पीएचडी करके पोस्ट डॉक्टरेट फैलोशिप (पीडीएफ) में पढ़ा रहे भारतीय मूल के मेधावियों से वार्ता की थी। इसका परिणाम अब दिखने लगा है। बीते कुछ माह में आईआईटी कानपुर में जिन 40 नये शिक्षकों की नियुक्ति हुई हैं उनमें 80 प्रतिशत विदेशों में पढ़ा रहे भारतीय मूल के हैं। मेरीलैंड यूनिवर्सिटी में पढ़ा रहीं डॉ. अनुभा अग्रवाल, एरीजोना स्टेट यूनिवर्सिटी के डॉ. सारंग इंगुले, सरडीयू यूनिवर्सिटी के शिवम त्रिपाठी और डॉ. मैती ने यहां ज्वाइन किया है। कुलसचिव संजीव एस, कशालकर के मुताबिक, कानपुर ही नहीं एनआईटी इलाहाबाद में 35 और एनआईटी वारांगल में भारतीय मूल के 27 शिक्षकों ने काम संभाल लिया है, जो अभी तक विदेशों में पढ़ा रहे थे। अगले माह तक कुछ और शिक्षक आएंगे। समझा जा रहा है कि केंद्र ने छठे वेतनमान में तकनीकी संस्थानों के शिक्षकों को जिस तरह की प्राथमिकता दी है उससे भी शिक्षकों में इन संस्थानों के प्रति आकर्षण बढ़ा है। विदेशों में यहां से अधिक वेतन पा रहे शिक्षकों की सोच में अग्रिम वेतनवृद्धि के फैसले से काफी परिवर्तन आया है। संस्थानों में उन्हें आवास की सुविधा के साथ कार्यभार ग्रहण करने के एक साल बाद सामान सहित आवागमन व्यय अलग से दिया जाता है। निदेशक एसजी धांडे कहते हैं कि जिस तरह के बदलाव दिख रहे हैं, उससे एक साल के अंदर असिस्टेंट प्रोफेसर स्तर पर शिक्षकों की कमी नहीं रहेगी। आईआईटी परिषद में विदेशी शिक्षकों को पूर्णकालिक रूप से नियुक्ति के प्रस्ताव पर सहमति हो गई तो संकट और भी कम हो जायेगा। एक समाधान यह भी शिक्षकों की कमी दूर करने को संस्थानों में वर्चुअल क्लास अथवा ई-लर्निंग क्लास चलाकर दूरस्थ शिक्षा को भी माध्यम बनाने की तैयारी है। इस प्रक्रिया में एक संस्थान में चल रही सजीव कक्षा को दूसरे संस्थान की कक्षा की स्क्त्रीन पर स्थानांतरित कर दिया जायेगा। उस कक्षा के छात्र भी सजीव अध्यापन कर रहे शिक्षक से सवाल जवाब कर सकेंगे(दैनिक जागरण,कानपूर,११.९.२०१०) ।

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