सरकारी महकमों में सीधी भर्ती व पदोन्नति में लागू आरक्षण की नई रोस्टर प्रणाली का मामला लटकता दिखाई दे रहा है। सरकार ने इसे कैबिनेट की सब कमेटी के हवाले कर दिया है। समाज कल्याण मंत्री मातबर सिंह कंडारी इसके अध्यक्ष और संसदीय कार्य मंत्री प्रकाश पंत व पंचायती राज मंत्री राजेंद्र भंडारी सदस्य बनाए गए है। प्रमुख सचिव कार्मिक कमेटी के सचिव नामित किए गए है।
राज्य के अधीन सेवाओं, शिक्षण संस्थाओं, सार्वजनिक उद्यमों, निगमों और स्वायत्तशासी संस्थाओं में आरक्षण नीति के तहत अनुसूचित जाति के लिए 19 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति के लिए 4 प्रतिशत और अन्य पिछड़े वर्ग के लिए 14 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था है। आरक्षण की यही व्यवस्था पदोन्नति के पदों पर भी लागू है। वर्तमान में आरक्षण लागू करने के लिए जो रोस्टर प्रणाली अपनाई गई है। इसके तहत पहला पद अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। उसके बाद 6, 11, 16, 21, 24, 26, 31, 36, 41, 46, 48,51, 56, 61, 66, 71,76, 81, 86, 91 व 96 वां पद अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है।
वर्तमान रोस्टर प्रणाली में कई खामियां है। जैसे दो पदों में पहला पद आरक्षित होने से वहां आरक्षण का प्रतिशत 50 प्रतिशत पहुंच रहा है जबकि एससी के लिए आरक्षण 19 प्रतिशत है। इस विसंगति के चलते केंद्र ने 1997 में आरक्षण के प्रतिशत के ंिहसाब से नया रोस्टर लागू कर दिया है। इसमें पहला पद अनारक्षित रखते हुए सातवां पद अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित किया है। इस संबंध में वर्ष 2006 में सर्वोच्च न्यायालय ने भी स्पष्ट किया कि जहां रोस्टर और आरक्षण के प्रतिशत में भिन्नता है वहां आरक्षण का प्रतिशत मान्य होगा।
केंद्र में पहले से ही आरक्षण का प्रतिशत वाली व्यवस्था को अपनाया हुआ है। इस व्यवस्था को हिमाचल, मध्य प्रदेश ने लागू कर दिया है। नहीं हुई कोर्ट की अवमानना उच्चतम न्यायालय के आदेशों को लागू न करने के संबंध में अपर सचिव कार्मिक ने कहा कि इसमें कोर्ट की अवमानना का मामला नहीं बनता। उन्होंने कहा कि कोर्ट ने प्रदेश सरकार को सीधे निदेश नहीं दिए है। क्या कहते है प्रभावित इस मामले में प्रभावित सामान्य वर्ग के लोगों का कहना है कि आरक्षण की सही व्यवस्था को ही लागू किया जाना चाहिए। इसके लिए केंद्र की व्यवस्था को अपनाया जा सकता है। बसपा व अनुसूचित जाति से संबंधित संगठन इसका विरोध कर रहे है। उनका कहना है कि रोस्टर प्रणाली में परिवर्तन से नियुक्ति से लेकर पदोन्नति तक दलितों को मिलने वाले अवसरों में कमी आएगी(जितेंद्र नेगी,राष्ट्रीय सहारा,देहरादून,3.9.2010)।
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