हिमाचलप्रदेश में प्रशासनिक प्राधिकरण को दोबारा शुरू करने पर आए केंद्रीय इस्पात मंत्री के बयान के बाद कर्मचारी राजनीति में हलचल पैदा हो गई है। प्रदेश अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के दोनों गुटों ने इस बयान के समर्थन और विरोध में अपना पक्ष रखना शुरू कर दिया है। प्रदेश अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ का एक धड़ा ट्रिब्यूनल को दोबारा शुरू करने को कर्मचारी हितैषी बता रहा है। वहीं अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ का दूसरा धड़ा ट्रिब्यूनल खत्म कर हाइकोर्ट में कर्मचारियों के मामले भेजने को कर्मचारी हितैषी बताते हुए ट्रिब्यूनल को दोबारा शुरू करने का विरोध कर रहा है।
गौरतलब है कि दो-तीन दिन पहले केंद्रीय इस्पात मंत्री वीरभद्र सिंह ने प्रदेश में कर्मचारियों के उत्पीड़न का हवाला देते हुए दोबारा कर्मचारी ट्रिब्यूनल शुरू करने की बात कही थी। वहीं कर्मचारी महासंघ का एक धड़ा हाईकोर्ट की कार्यप्रणाली पर संतोष जताते हुए सर्विस बेंच के गठन की मांग भी उठना शुरू हो गई है।
प्रदेश अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ (चावला गुट) के महासचिव सुरेंद्र मनकोटिया ने प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री के बयान का स्वागत करते हुए कहा है कि ट्रिब्यूनल से लाखों कर्मचारियों को लाभ मिला है। उन्होंने कहा है कि एक विशेष पार्टी को खुश करने में लगे अधिकारी व कर्मचारी भी ट्रिब्यूनल के दायरे में आएंगे। मनकोटिया ने सभी ट्रिब्यूनल का विरोध करने वाले सभी कर्मचारी नेताओं की निंदा करते हुए कहा है कि मौजूदा सरकार कर्मचारियों को ताश के पत्तों की तरह फैंट रही है और तथाकथित महासंघ मूकदर्शक बना सरकार के गुणगान में लगा है।
हिमाचल प्रदेश कर्मचारी परिसंघ ने ट्रिब्यूनल को खत्म करने के प्रदेश सरकार के निर्णय का स्वागत करते हुए केंद्रीय इस्पात मंत्री के बयान की निंदा कर रहा है। परिसंघ के प्रदेश अध्यक्ष विनोद कुमार ने कहा है कि प्रशासनिक प्राधिकरण को दोबारा शुरू करने पर केंद्रीय इस्पात मंत्री का यह बयान ईमानदार अधिकारियों को धमकाने वाला है। उन्होंने कहा है कि प्रशासनिक ट्रिब्यूनल की स्थापना के पीछे मूल उद्देश्य कर्मचारियों को प्रताड़ित करना ही रहा है।
प्रदेश अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष प्रेम सिंह भरमौरिया का कहना है कि ट्रिब्यूनल को खतम किया जाना कर्मचारी हित में उठाया गया प्रदेश सरकार का ऐतिहासिक कदम है।
उनका कहना है कि 1988 में ट्रिब्यूनल को खत्म करने की मांग को लेकर हुई हड़ताल में तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने भी ट्रिब्यूनल बंद करने का आश्वासन दिया, लेकिन उस पर अमल नहीं किया। भरमौरिया ने कहा है कि प्रशासनिक ट्रिब्यूनल से हाईकोर्ट में पहुंचे 28000 मामलों में 90 प्रतिशत तबादलों से जुड़े थे जिनमें से 95 फीसदी निपट चुके हैं(दैनिक भास्कर,शिमला,14.9.2010)।
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