राष्ट्रभाषा होने के बावजूद हिन्दी भाषा को अपने ही देश में अस्तित्व कायम रखने की ल़ड़ाई ल़ड़नी प़ड़ रही है जबकि विदेशों में कई लोग हमारी राष्ट्रभाषा को अपना रहे हैं। हरियाणा व चंडीग़ढ़ में हिन्दी दिवस के अवसर पर किए गए सर्वे के दौरान कई चौंका देने वाले तथ्य सामने आए। सर्वे में शामिल किए गए सभी लोग इस बात को लेकर एकमत थे कि आज देशवासी अंग्रेजी में बातचीत करना अपनी शान समझते हैं,जबकि विदेशी लोग यहां आकर भी अपनी भाषा नहीं छो़ड़ते हैं।
सर्वे के दौरान पता चला कि ५० में से ३० लोग कहानी प़ढ़ना पसंद करते हैं,जबकि १५ कविता व पांच लोग उपन्यास प़ढ़ते हैं। नाटकों व लघु कथाओं में किसी ने रुचि नहीं दिखाई। ज्यादातर लोग इस बात को लेकर एकमत थे कि हिन्दी के अखबारों में अंग्रेजी के शब्दों का इस्तेमाल गलत है। इससे हिन्दी अखबार अपने मूल उद्देश्यों से तो भटकते हैं और साथ ही अंग्रेजी के बराबर भी ख़ड़े नहीं हो पाते हैं।
५० में से ४० लोगों ने इस बात का खुलकर समर्थन किया कि हिन्दी के अखबारों में अंग्रेजी के शब्दों का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। हिन्दी अखबारों को अपनी ही वर्तनी का इस्तेमाल करना चाहिए। इसके उलट केवल १० लोगों को यह मानना था कि बोलचाल की भाषा में जब अंग्रेजी भाषा का इस्तेमाल होने लगा है तो समाचार पत्रों में भी इसका इस्तेमाल होना चाहिए।
हर साल हिन्दी दिवस के अवसर पर आयोजित होने वाले हिन्दी पखवा़ड़े को ज्यादातर लोग कागजी मानते हैं। ज्यादातर लोग कागजी मानते हैं। ५० में से ४५ लोगों का मानना है किहिन्दी पखवा़ड़ा केवल कागजों तक ही सिमटा हुआ है।
पखवा़ड़ा समाप्त होने के बाद सब कुछ सामान्य हो जाता है। केवल पांच लोग मानते हैं कि हिन्दी दिवस या पखवा़ड़े के आयोजन से हिन्दी के प्रचार-प्रसार में मदद मिलती है। इसके उलट वर्तमान परिवेश में ३० लोगों का यह मानना है कि हिन्दी की हैसियत व्यावहारिक रूप में ब़ढ़ने की बजाय कम हो रही है। पांच लोग मानते हैं कि बदलते हुए हालातों में हिन्दी भाषा न केवल व्यावहारिक बनती जा रही है, बल्कि लोगों की इसमें दिलचस्पी भी ब़ढ़ी है। पांच लोग इस बारे में अपनी कोई भी राय देने में सफल नहीं हो सके(संजीव शर्मा,नई दुनिया,दिल्ली,12.9.2010)।
हरियाणा की अधीनस्थ अदालतों में हिन्दी का प्रवेश अभी तक नहीं हो सका है।
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