सर्वशिक्षा अभियान की सफलता के बाद सरकार ने माध्यमिक शिक्षा की चुनौतियों से निपटने का ताना-बाना तो बुन लिया, लेकिन वह जमीन पर भी उतरेगा, इसमें संदेह है। सरकार भी इस सच्चाई से वाकिफ है। फिर भी वह करे तो क्या? आलम यह है कि दो राज्यों को छोड़ किसी ने भी बीते साल के खर्च का केंद्र को न तो ब्योरा दिया और न ही आगे के प्रस्तावित कार्यो के लिए धन की ही मांग की है। सरकार की योजना के मुताबिक 2011-12 तक माध्यमिक (कक्षा नौ एवं दस) में दाखिला दर को 52 प्रतिशत से बढ़ाकर 70 प्रतिशत करना है। मोटे तौर पर 32 लाख से अधिक अतिरिक्त बच्चों को दाखिला दिलाना है। इसके लिए 60 हजार माध्यमिक विद्यालयों को उच्चीकृत या फिर ज्यादा सुदृढ़ बनाना है। 11 हजार नए माध्यमिक विद्यालयों को खोलने के साथ ही 80,500 हजार अतिरिक्त कक्षाओं का निर्माण व लगभग दो लाख और शिक्षकों की भर्ती उसके एजेंडे पर है। सरकार ने 11वीं योजना के (2011-12) अंत तक के लिए यह एजेंडा तैयार तो जरूर किया था, लेकिन वह इस तय समय में हकीकत में नहीं बदलेगा। तर्क यह है कि उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड जैसे राज्यों में माध्यमिक में दाखिला दर जब अभी राष्ट्रीय औसत से बहुत नीचे है तो डेढ़ साल में वह प्रस्तावित 70 प्रतिशत के राष्ट्रीय औसत पर कहां से पहंुच जाएगी। राष्ट्रीय स्तर पर मौजूदा सकल दाखिला दर (जीईआर) अभी 58.16 प्रतिशत है, जबकि झारखंड में यह महज 26 प्रतिशत पर टिकी है, जो देश में सबसे नीचे है। सूत्रों की मानें तो बड़े राज्यों में बिहार और उत्तर प्रदेश भी लगभग इसी श्रेणी में हैं। जबकि हिमाचल में दर 97 प्रतिशत और तमिलनाडु में 91 प्रतिशत है। इस मामले में राज्यों की गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बीते एक साल में राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान में उन्होंने अपने तय लक्ष्यों को कितना हासिल किया, केंद्र को उसकी जानकारी नहीं है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय बस इतना जानता है कि 2009-10 में उसने राज्यों को 7355 स्कूलों को सुदृढ़ करने, 8325 अतिरिक्त क्लासरूम के निर्माण, 3953 स्कूलों में साइंस लैब, 2834 स्कूलों में प्रयोगशाला के सामान, 3681 स्कूलों में लाइब्रेरी, 3491 स्कूलों में कंप्यूटर लगाने के लिए 3418 करोड़ रुपये की मंजूरी दी थी। मानव संसाधन विकास मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार इस धन से राज्यों में क्या काम हुआ, उसकी जानकारी उसे नहीं है, क्योंकि पंजाब और तमिलनाडु को छोड़ किसी राज्य ने न तो धन खर्च का उपयोग प्रमाण पत्र दिया और न ही आगे के प्रस्तावित कार्यक्रमों के लिए केंद्र से धन की मांग की। यह स्थिति तब है जब अभियान के खर्च का 75 प्रतिशत बोझ केंद्र और 25 प्रतिशत राज्य सरकारों को उठाना है। खर्च का यह बंटवारा 12 वीं योजना में केंद्र व राज्यों के बीच 50:50 होना है। जाहिर है कि जब राज्य सरकारें अभी इस बोझ को नहीं उठा रही हैं तो आगे उनसे क्या उम्मीद की जा सकती है(राजकेश्वर सिंह,दैनिक जागरण,दिल्ली,११.९.२०१०)।
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