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21 सितंबर 2010

तनाव का शिकार है रेलवे का रनिंग स्टाफ

हाल के समय में सिगनल ओवरशूटिंग और रनिंग स्टाफ की नशे की प्रवृत्ति के बढ़ते मामलों ने रेल मंत्रालय को चिंता में डाल दिया है। बदरवास ट्रेन हादसा भी ड्राइवर द्वारा सिगनल की अनदेखी किये जाने से हुआ बताया जा रहा है। इससे पहले पश्चिम बंगाल में हुई सैंथिया ट्रेन दुर्घटना और उससे पहले मथुरा में मेवाड़ एक्सप्रेस दुर्घटना का कारण भी सिगनल ओवरशूटिंग ही बताया गया था। जबकि बदरवास दुर्घटना में स्टेशन मास्टर के नशे का आदी होने की आशंकाएं जताई जा रही हैं। ये मामले इस बात का संकेत हैं कि रेलवे में रनिंग स्टाफ की स्थिति ठीक नहीं है और उन पर काम का अत्यधिक दबाव है। पिछले दिनों रेल राज्यमंत्री केएच मुनियप्पा ने संसद में इसे स्वीकार करते हुए बताया था कि इस समय रेलवे में संरक्षा श्रेणी के 79 हजार से ज्यादा पद खाली पड़े हैं जिनमें अकेले लोको पायलटों (ड्राइवरों) के 7190 हजार पद शामिल हैं। लोको पायलटों को रेलवे में सतत श्रेणी का स्टाफ माना गया है जिसे हफ्ते में कम से कम 79 घंटे ड्यूटी करनी पड़ती है। जबकि दो हफ्तों में एक ड्राइवर को औसतन 104 घंटे की रोस्टर ड्यूटी करनी पड़ती है। नियमानुसार ड्राइवर के लगातार 10 घंटे से ज्यादा ड्यूटी का प्रावधान नहीं है और इसके बाद उसे आराम देने का प्रावधान है। यदि ऐसा संभव न हो तो अधिकतम 12 घंटे की ड्यूटी के बाद किसी दूसरे ड्राइवर को लगाया जाना चाहिए। लेकिन व्यवहार में कई बार इसका उल्लंघन होता है और ड्राइवर 14-15 घंटे तक ड्यूटी करने को बाध्य होते हैं। इससे उनमें थकान, नींद की कमी और मतिभ्रम की समस्याएं पैदा होती है। नतीजा सिगनल पहचानने में चूक या सिगनल की अनदेखी के रूप में सामने आता है। अभी यह पता चलता बाकी है कि नवीनतम दुर्घटना में ड्राइवर कितनी देर की ड्यूटी कर चुका था। लेकिन इस बात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि ड्राइवर ज्यादा ड्यूटी का शिकार हो। स्टाफ की कमी के चलते कई मर्तबा पैसेंजर ट्रेन या मालगाड़ी के कम अनुभवी ड्राइवरों को एक्सप्रेस ट्रेन चलाने के लिए भेज दिया जाता है। दूसरा मसला ड्राइवरों के शराब पीकर गाड़ी चलाने या रास्ते में शराब पीने का है। इस मामले में ड्राइवर के शराब पीने या न पीने के तथ्य आने अभी बाकी हैं। लेकिन टीवी चैनलों की रिपोर्ट के मुताबिक जिस तरह बदरवास स्टेशन मास्टर के कमरे से शराब की खाली बोतलें बरामद हुई हैं उससे इस मामले में कहीं न कहीं रनिंग स्टाफ की नशेबाजी का कोण भी जुड़ रहा है। यह भी ऐसा मसला है जिस पर पिछली कई दुर्घटनाओं की जांच में इशारा किया गया है। यही वजह है कि ड्यूटी से पहले ड्राइवरों का ब्रेथ एनालाइजर टेस्ट अनिवार्य कर दिया गया है(दैनिक जागरण,राष्ट्रीय संस्करण,21.9.2010)।

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