मुख्य समाचारः

सम्पर्कःeduployment@gmail.com

15 सितंबर 2010

ओबीसी उम्मीदवार से एम्स में भेदभाव!

वैसे तो पिछड़ी जाति के उम्मीदवारों को सामान्य जाति के उम्मीदवारों से कम अंक लाने पर भी आरक्षण के जरिए चुन लिया जाता है, लेकिन देश के सबसे बड़े चिकित्सा संस्थान एम्स में सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों से अधिक अंक लाने पर भी ओबीसी उम्मीदवार का दाखिला नकार दिया गया।

यहां ओबीसी वर्ग का एक उम्मीदवार 91.48 अंकों के साथ उत्तीर्ण हुआ, लेकिन उसे दाखिला देने के बजाय 91.1 प्रतिशत अंक लाने वाले सामान्य श्रेणी के उम्मीदवार को चुन लिया गया।यह धांधली पोस्ट ग्रेज्यूएट कोर्स में दाखिला के दौरान किया गया।

यहां आयोजित एमडी की परीक्षा में कैलाश मुंधे (रोल नंबर-1371102) को 91.48 प्रतिशत अंक प्राप्त हुआ, जबकि भाविता बाधवा को 91.1 प्रतिशत अंक मिला। कैलाश मुंधे ओबीसी (नॉन-क्रीमीलेयर) वर्ग और भाविता बाधवा सामान्य वर्ग से हैं।

एम्स प्रशासन ने मुंधे को यह कहते हुए दाखिला देने से इनकार कर दिया कि एमडी कोर्स में ओबीसी वर्ग के लिए केवल एक सीट आरक्षित है। बता दें कि मुंधे ने ओबीसी श्रेणी में द्वितीय स्थान प्राप्त किया है। दूसरी तरफ, मुंधे से कम अंक प्राप्त करने वाले भाविता बाधवा को दाखिला दे दिया गया।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के दिशा- निर्देशों के मुताबिक आरक्षित श्रेणी का कोई उम्मीदवार अगर सामान्य श्रेणी के उम्मीदवार से अधिक अंक प्राप्त करता है तो आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवार को सामान्य श्रेणी के तहत माना जाता है। उसे सामान्य श्रेणी के तहत ही दाखिला दिया जाता है।

बशर्ते, आरक्षित श्रेणी (ओबीसी) और सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों के अंक के बीच फासला दस फीसदी से अधिक न हो। खाली हुए सीट को प्रतीक्षा सूची में शामिल आरक्षित श्रेणी के ही दूसरे उम्मीदवार को दे दिया जाता है। कैलाश मुंधे ने एम्स के डीन डॉ. रानी कुमार सहित अन्य कई आला अधिकारियों को पत्र लिखकर उसके साथ हुए भेदभाव की शिकायत किया है।

शिकायत की कॉपी दैनिक भास्कर के पास उपलब्ध है, लेकिन प्रशासन कोई ठोस कार्रवाई करने के बजाए मामले की लीपापोती में जुट गया है। संस्थान के निदेशक डॉ. आरसी डेका और डीन डॉ. रानी कुमार से इस मसले पर कई बार बात करने की कोशिश की गई, लेकिन सफलता नहीं मिली। वैसे, उच्च स्तरीय सूत्रों के मुताबिक इस मसले पर कई दौर की बैठक हो चुकी है। फिलहाल, मामला सब-डीन डॉ. राकेश यादव के पास लंबित है।

कानून के तहत ही दाखिला प्रक्रिया को अंजाम दिया गया है। जहां तक आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवार के साथ भेदभाव बरतने की है तो असफल होने वाले छात्र अमूमन ऐसा ही आरोप लगाते हैं।
वीपी गुप्ता, रजिस्ट्रार

मुझे मामले की कोई जानकारी नहीं है। मामले की बुधवार को जांच करवाऊंगा।
सबडीन, डॉ. राकेश यादव

मैं दो दिन से काफी व्यवस्त था, इसलिए मामले पर गंभीरता से सोच नहीं पाया हूं। शिकायत पत्र शायद ऑफिस में होगा। बुधवार को इसकी जांच कराऊंगा। - डॉ.केके वर्मा, इंचार्ज एक्जामिनेशन।
डॉ. केके वर्मा, इंजार्च एक्जामिनेशन(धनंजय कुमार,दैनिक भास्कर,दिल्ली,15.9.2010)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

टिप्पणी के बगैर भी इस ब्लॉग पर सृजन जारी रहेगा। फिर भी,सुझाव और आलोचनाएं आमंत्रित हैं।