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05 सितंबर 2010

शिक्षा का अर्थःए.पी.जे.अब्दुल कलाम

शिक्षा का सही अर्थ शिक्षा से मानव का व्यक्तित्व संपूर्ण, विनम्र और संसार के लिए उपयोगी बनता है। सही शिक्षा से मानवीय गरिमा, स्वाभिमान और विश्व बंधुत्व में बढ़ोतरी होती है। अंतत: शिक्षा का उद्देश्य है-सत्य की खोज। इस खोज का केंद्र अध्यापक होता है, जो अपने विद्यार्थियों को शिक्षा के माध्यम से जीवन में और व्यवहार में सच्चाई की शिक्षा देता है। छात्रों को जो भी कठिनाई होती है, जो भी जिज्ञासा होती है, जो वे जानता चाहते हैं, उन सबके लिए वे अध्यापक पर ही निर्भर रहते हैं। यदि शिक्षक के मार्गदर्शन में प्रत्येक व्यक्ति शिक्षा को उसके वास्तविक अर्थ में ग्रहण कर मानवीय गतिविधि के प्रत्येक क्षेत्र में उसका प्रसार करता है तो मौजूदा 21वीं सदी में दुनिया काफी सुंदर हो जाएगी। आज की युवा पीढ़ी ऐसी शिक्षा प्रणाली चाहती है जो उसके खोजी और सृजनशील मन को सबल बनाने के साथ-साथ उसके सामने चुनौती प्रस्तुत करे। देश का भविष्य उन पर टिका हुआ है। वे वर्तमान में शिक्षा प्रणाली के संबंध में सोच-विचार करना चाहते हैं। एक अच्छी शिक्षा प्रणाली में ऐसी क्षमता होनी चाहिए जो छात्रों की ज्ञान प्राप्ति की तीव्र जिज्ञासा को शांत कर सके। शैक्षणिक संस्थानों को ऐसे पाठ्यक्रम बनाने के लिए खुद को तैयार करना चाहिए जो विकसित भारत की सामाजिक और प्रौद्योगिकी संबंधी आवश्यकताओं के प्रति संवेदनशील हों। वर्तमान पाठ्यक्रम में विकास कार्यो की गतिविधियों को अनिवार्यत: स्थान दिया जाना चाहिए ताकि ज्ञान समाज की भावी पीढ़ी पूरी तरह से सामाजिक परिवर्तन के सभी पहलुओं के अनुकूल हो सके। विज्ञान मानवता को ईश्वर का सबसे बड़ा वरदान है। तर्क-आधारित विज्ञान समाज की पूंजी है। हम विज्ञान, प्रौद्योगिकी, चिकित्सा, राजनीति, नीति-निर्माण, धर्मशास्त्र, न्याय जैसे किसी क्षेत्र में कार्यरत रहें, हमें आम लोगों की सेवा करनी ही होगी, क्योंकि ज्ञान और सभी प्रकार के कार्यो का मूलमंत्र मानव-कल्याण है। विज्ञान के अंतर्गत जिज्ञासा प्रकट की जाती है और प्रकृति के नियमों में कठिन परिश्रम और अनुसंधान से उन जिज्ञासाओं का निदान ढूंढा जाता है। विज्ञान एक रोमांचकारी विषय है और एक वैज्ञानिक के लिए समूचे जीवन का मिशन। विज्ञान में निपुण होने के लिए गणित का ज्ञान आवश्यक है। गणित और विज्ञान के संयोग से एक दीप्ति पैदा होती है। जरूरी यह होता है कि सिद्धांत को सामने रख कर प्रयोग किया जाए। जो प्रश्न छात्रों के मन में विज्ञासा उन्पन्न करते हैं और यदि वे विज्ञान से जुडे़ हैं तो छात्र विज्ञान की ओर आकर्षित होते हैं। सूचना प्रौद्योगिकी में प्रगति से दुनिया सिमट गई है। दुनिया की वास्तविक जटिल समस्याओं के निदान के लिए दुनिया के वैज्ञानिकों के बीच तालमेल होना अनिवार्य है। प्राचीन काल में भारत को शिक्षा, वैज्ञानिक अनुसंधान और दर्शन का गढ़ माना जाता था, किंतु कुछ दशकों से भारत के वैज्ञानिकों का रुख पूर्व से पश्चिम की ओर हो गया है। देर से ही सही, पश्चिमी देशों के वैज्ञानिक फिर भारत की ओर आकृष्ट होने लगे हैं। हमें भारत को विज्ञान और अनुसंधान के क्षेत्र में श्रेष्ठता का केंद्र बनाने के लिए और श्रम करना होगा। भारत 2020 तक अपने-आपको एक विकसित राष्ट्र बनाने के मिशन में जुटा हुआ है। जिस संसाधन के बल पर यह मकसद हासिल होगा वे हैं पच्चीस वर्ष से कम उम्र के देश के देश के 54 करोड़ नौजवान। बच्चे और युवक किसी देश के भविष्य की तस्वीर होते हैं। हमारे समाज का एक महत्वपूर्ण, सशक्त और संसाधनों से भरा हुआ वर्ग युवकों का है जिनमें आसमान की बुलंदियों का छू लेने की आकांक्षा धधक रही है। यदि उनकी ऊर्जा को सही दिशा दी जाए तो उससे ऐसी गतिशीलता पैदा होगी जो राष्ट्र को विकास के तेज वाहन में दौड़ा देगी। युवकों को अपनी योजना और विकास प्रक्रिया का केंद्र बिंदु मानते हुए हमें इस बहुमूल्य मानव संसाधन की देखरेख करने की आवश्यकता है। मैंने भारतीय और विदेशी बच्चों से बातचीत के दौरान देखा कि उनमें एक जैसी आकांक्षा है और वह है- शांतिपूर्ण, खुशहाल, सुरक्षित देश में जिंदगी जीना। सृजनशीलता मानव-चिंतन का आधार है। चाहे कितनी भी गति और स्मृति वाले कंप्यूटर बन जाएं, मानव चिंतन का स्थान हमेशा सबसे ऊपर रहेगा। सृजनशीलता जैसा गुण इंसान में सदा मौजूद रहेगा और प्रौद्योगिकी से प्राप्त होने वाली गणना क्षमता जैसा मजबूत हथियार इंसान के पास होगा। उसका उपयोग वह इस दुनिया को और खूबसूरत बनाने की अपनी योजना को साकार करने में करेगा(दैनिक जागरण,5.9.2010)।

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