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20 सितंबर 2010

अनुवाद में करिअर

विश्व को एक वैश्विक गांव बनाने का सपना पूरा करने में अनुवादक एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। चाहे विदेशी फिल्मों की भारतीय भाषा में डबिंग हो या विदेशी भाषा की पुस्तकों का अनुवाद, अनुवादक की हर जगह जरूरत पड़ती है। भारत में संसद की कार्यवाही को आम जनता तक पलक झपकते पहुंचाने का कार्य भी अनुवादक के जरिए ही संभव है। इसके जरिए हम कुछ वैसा ही अनुभव करते और सोचते हैं, जैसा दूसरा कहना चाहता है। परस्पर एक-दूसरे को जोड़ने में और संवाद स्थापित करने में अनुवादक की भूमिका बहुत अहम हो गई है। कोई भी युवा इस क्षेत्र में आकर अपना उज्ज्वल कॅरिअर बना सकता है। अनुवाद एक साधना की तरह है। इस साधना में लीन होने के बाद ही इसका सही रूप में आनंद उठाया जा सकता है। लेखक की अपनी शैली होती है, अनुवादक का यह कर्तव्य है कि वह अनुवाद में लेखक की शैली को बनाए रखे। अनुवाद एक लिखित विधा है, जिसको करने के लिए कई साधनों की जरूरत पड़ती है। मसलन शब्दकोष, संदर्भ ग्रंथ, विषय विशेषज्ञ या मार्गदर्शक की मद्द से अनुवाद कार्य पूरा किया जाता है। अपनी मर्जी के मुताबिक अनुवादक इसे कई बार शुद्धिकरण के बाद पूरा कर सकता है। अनुवाद में शब्द प्रति शब्द, शाब्दिक अनुवाद, भावानुवाद, विस्तारानुवाद और सारानुवाद जैसी कई चीजें प्रचलित हैं। यह क्षेत्र के हिसाब से तय होता है कि किसको क्या चाहिए। सरकारी दफ्तरों में आमतौर पर शब्द प्रति शब्द अनुवाद करने की ही परंपरा है। अध्ययन सामग्री तैयार करने में विस्तार से अनुवाद करने की जरूरत पड़ती है।

अनुवादक बनने के लिए विश्वविद्यालयों में मूल तौर पर डिप्लोमा और डिग्री कोर्स हैं। डिप्लोमा एक साल का होता है। इसमें दाखिला लेने के लिए किसी भाषा में स्नातक होना जरूरी है। साथ ही दूसरी भाषा के ज्ञान और पढ़ाई की भी मांग की जाती है। मसलन हिंदी-अंग्रेजी अनुवाद के डिप्लोमा कोर्स के लिए दोनों भाषाओं का ज्ञान होना जरूरी है। इनमें से छात्र ने किसी एक में स्नातक किया हो और इसके साथ ही साथ दूसरी भाषा भी पढ़ी हो।

अनुवाद की कला से रू-ब-रूकराने के लिए आज विश्वविद्यालयों और विभिन्न शिक्षण संस्थानों में ढेरों कोर्स भी चल रहे हैं। अनुवाद में आज विश्वविद्यालय एम. फिल तथा पीएचडी भी करा रहे हैं। गौरतलब है कि अनुवाद का काम महज डिग्री व डिप्लोमा से ही नहीं सीख जा सकता है। इसके लिए निरंतर अभ्यास और व्यापक ज्ञान की भी जरूरत पड़ती है। यह दो भाषाओं के बीच सेतु का काम करता है। अनुवादक को इस कड़ी में स्रोत भाषा से लक्ष्य भाषा में जाने के लिए दूसरी भाषा के इतिहास और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि का भी ज्ञान हासिल करना पड़ता है। एक प्रोफेशनल अनुवादक बनने के लिए आज कम से कम स्नातक होना जरूरी है। इसमें दो भाषाओं के ज्ञान की मांग की जाती है। उदाहरण के रूप में यदि आपको हिंदी-फ्रेंच भाषा का अनुवादक बनाना है तो आपको दोनों भाषाओं की व्याकरण और सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का ज्ञान जरूर होना चाहिए।

अनुवाद में डिप्लोमा या डिग्री कोर्स छात्र को इसके सैद्धांतिक और प्रैक्टिकल भाग से अवगत कराता है। यह अनुवाद के क्षेत्र में आने वाले युवाओं का मार्गदर्शन करता है। हालांकि, अनुवादक बनने के लिए अभ्यास और ज्ञान की अहम भूमिका होती है। निरंतर अभ्यास से ही अनुवाद में दक्षता हासिल की जा सकती है तथा चमकीला कॅरिअर बनाया जा सकता है। वैश्वीकरण के दौर में अनुवाद का दायरा काफी बड़ा हो गया है। सरकारी स्तर पर अनुवाद जगह-जगह तो होते ही हैं। इसके अलावा शिक्षण संस्थानों में तुलनात्मक साहित्य के अध्ययन में अनुवाद की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। मीडिया में अनुवाद का अहम रोल है। दूतावासों और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यावसायिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक स्तर पर एक-दूसरे से जोड़ने के लिए अनुवादक की जरूरत पड़ती है। इस लिहाज से देखें तो अनुवादक को पहले से ज्यादा और विविध क्षेत्रों में कई अवसर मिल रहे हैं।

कहां से करें कोर्स

१. भारतीय अनुवाद परिषद, २४ स्कूल लेन, बंगाली मार्केट, नई दिल्ली।

२. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, न्यू महरोली रोड, नई दिल्ली।

३. भारतीय विद्या भवन, नई दिल्ली।

४. दिल्ली विश्वविद्यालय, उत्तरी परिसर, दिल्ली।

५. इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, मैदानगढ़ी, नई दिल्ली।
(जयंतीलाल भंडारी,नई दुनिया,20.9.2010)

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